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लेश्या-कोश सुक्कस समुग्घादे असंखलोगा य सव्व लोगो य ।
-गोजी० पृ० १६६ । गाथा अनअंकित प्रथम तीन लेश्याओं का सामान्य से ( सर्व लेश्या द्रव्यों की अपेक्षा ) स्वस्थान, समुद्घात तथा उपपाद की अपेक्षा सर्वलोक प्रमाण क्षेत्र अवगाह है तथा तीन पश्चात् की लेश्याओं का लोक के असंख्यात भाग क्षेत्र परिमाण अवगाह है। शुक्ललेश्या का क्षेत्रावगाह समुद्धात की अपेक्षा लोक का असंख्यात भाग ( बहु भाग ) या सर्वलोक परिमाण है।
१७ द्रव्य लेश्या की वर्गणा
(क) कण्हलेस्साए णं भंते ! केवइयाओ वग्गणाओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! अणंताओ वग्गणाओ एवं जाव सुक्कलेस्साए।
-पण्ण० प १७ । उ ४ । सू ४६ । पृ० ४४६ कृष्ण यावत् शुक्ल लेश्याओं की प्रत्येक की अनन्त वर्गणा होती है ।
(ख) जीवेहि अपडिगहितपोग्गलक्खंधाणं किण्ण-णील-काउ-तेउपम्म-सुक्कसण्णिदाओ छलेस्साओ होति । अणंतभागवड्ढि-असंखेजभागवढि संखेजभागवढि संखेजगुणवढि-असंखेजगुणवढि-अणंतगुणवढि असंखेन्जलोगमेत्तवण्णभेदेण पोग्गलेसु ट्टिदेसु किम छन्चेव लेस्साओ त्ति एत्थ णियमो कीरदे ? ण एस दोसो, पज्जवणयप्पणाए लेस्साओ असंखेजलोगमेत्ताओ, दव्व ट्ठियणयप्पणाए पुण लेस्साओ छच्चेव होंति ।
-षट् ० पु १६ । पृ० ४८५ जीवों के द्वारा अप्रतिगृहीत पुद्गलस्कन्धों को द्रव्यलेश्या कहते हैं, जो कृष्णादि छः प्रकार की होती है। अनन्त भाग वृद्धि, असंख्यात भाग वृद्धि, संख्यात भाग वृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि और अनन्तगुणवृद्धि के क्रम से असंख्यात लोकप्रमाण वर्ण वाले पुद्गल देखे जाते हैं, अतः इस स्थिति में छः ही लेश्याएं हैं—ऐसा नियम क्यों किया गया है ? यद्यपि पर्यायाथिक नय की विवक्षा से लेश्याएं असंख्यात लोक प्रमाण हैं। परन्तु द्रव्याथिक नय की विवक्षा से लेश्याएं छः ही होती हैं ।
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