________________
लेश्या-कोश
८७
१३ द्रव्यलेश्या के रस :
कण्हलेसाणं भंते कइ x x x रसा x x x पन्नत्ता ? गोयमा ! दव्वलेस्सं पडुच्च x x x पंच रसा x x x एवं जाव सुक्कलेस्सा ।
--भग० श १२ । उ ५ । सू १६ । पृ० ६६४ द्रव्यलेश्या के छहों भेद पाँचरसवाले हैं। १३.१ कृष्णलेश्या के रस ___ (क) कण्हलेस्सा णं भंते ! केरिसिया आसाएणं पन्नत्ता ? गोयमा ! से जहानामए निंबे इ वा निंबसारे इ वा निंबछल्ली इ वा निंबफाणिए इ वा कुडए इ वा कुडगफलए इ वा कुडगछल्ली इ वा कुडगफाणिए इ वा कडुगतुबी इ वा कडुगतुंबीफले इ वा खारतउसी इ वा खारतउसीफले इ वा देवदाली इ वा देवदालीपुप्फे इ वा मियवालुकी इ वा मियवालु कीफले इ वा घोसाडिए इ वा घोसाडइफले इ वा कण्हकंदए इ वा वज्जकंदए इ वा, भवेयारूवे ? गोयमा! णो इण सम?, कण्हलेस्सा णं एत्तो अणितरिया चेव जाव अमणामतरिया चेव आसाएणं पन्नत्ता।
-पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२३३ । पृ० २६५ (ख) जह कडुयतुंबगरसो, निंबरसो कडुयरोहिणिरसो वा । एत्तो वि अणंतगुणो, रसो य किण्हाए नायव्वो।।
-उत्त० अ ३४ । गा १० । पृ० १०४६ नीम, नीमसार, नीम की छाल, नीम की क्वाथ, कुटज फल, कुटज छाल, कुटज क्वाथ, कडुबी तुम्बी, कडुबी तुम्बी का फल, क्षारत्र पुष्पी, उसका फल, देवदाली, उसका पुष्प, भृगवाल की, उसका फल, घोषातकी, उसका फल, कृष्णकंद, वज्रकंद, कटरोहिणी आदि के स्वाद से अनिष्टकर, अकंतकर अप्रीतिकर, अमनोज्ञ तथा अनभावने आस्वादवाली कृष्णलेश्या होती है। १३.२ नीललेश्या के रस
(क) नीललेस्साए पुच्छा। गोयमा ! से जहानामए भंगी इ वा भंगीरए इ वा पाढा इ वा चविया इ वा चित्तामूलए इ वा पिप्पली
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org