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लेश्या-कोश
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छप्पयणीलकवोद सुहेमंवुजसंखसणिहा वणे। संखेज्जासंखेजाणंतवियप्पा य पत्तेयं ॥
–गोजी० गा ४६४ वर्ण की अपेक्षा से भ्रमर के समान कृष्णलेश्या, नीलमणि ( नीलम ) के समान नीललेश्या, कबूतर के समान कापोतलेश्या, स्वर्ण के समान तेजोलेश्या, कमल के समान पद्मलेश्या तथा शंख के समान शुक्ललेश्या होती है। इन वर्गों में से प्रत्येक का ( इन्द्रिय-ज्ञान की अपेक्षा ) संख्यात, ( स्कंध की अपेक्षा ) असंख्यात भेद तथा ( परमाणु की अपेक्षा ) अनन्त भेद होते हैं ।
_x x x तव्वदिरित्तदव्वलेस्सा पोग्गलक्खंधाणं चक्खिदियगेज्मो वण्णो। सो छविहो-किण्णलेस्सा णीललेस्सा काउलेस्सा तेउलेस्सा पम्मलेस्सा सुक्कलेम्सा चेदि । तत्थ भमरंगार-कज्जलादीणं किण्णलेस्सा । किंवकदलीदावपत्तादीणं णीललेस्सा। छार-खर-कवोदादीणं काउलेस्सा। कुंकुम-जवाकुसुम कुसुभाढीणं तेउलेस्सा। तडवड-पउमकुसुमादीणं पम्मलेस्सा । हंस-बलायादीणं सुक्कलेस्सा।
-षट० पु १६ । पृ० ४८४ नोआगम द्रव्यलेश्या का तीसरा भेद तदव्यतिरिक्तद्रव्यलेश्या है। पुद्गलस्कन्धों के चक्षुरिन्द्रिय से ग्रहण योग्य वर्ण को तद्व्यतिरिक्तद्रव्यलेश्या कहा जाता है । वह छः प्रकार की होती में—कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म और शुक्ल ।
कृष्णलेश्या भ्रमर, अंगार, कज्जल आदि के सम वर्ण की होती है। नीललेश्या नीम, कदली, दाव के पत्ते आदि के सम वर्ण की होती है। कापोतलेश्या खर, कबूतर आदि के सम वर्ण की होती है। तेजोलेश्या कुंकुम, जपाकुसुम, कसुम कुसुम आदि के सम वर्ण की होती है । पद्मलेश्या तडवडा, पद्म पुष्पादि के सम वर्ण की होती है। शुक्ललेश्या हंस, बलाका–बगुला आदि के सम वर्ण की होती है।
'१२ द्रव्यलेश्या की गन्ध
कण्हलेस्सा णं भंते ! कइ x x x गंधा x x x पन्नत्ता ? गोयमा ! दव्वलेस्सं पडुच्च x x x दुगंधा x x एवं जाव सुकलेस्सा।
-भग० श १२ । उ ५ । सू १६ । पृ० ६६४
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