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लेश्या - कोश
वीरपूरसमप्पभा ।
(ख) संखंककुंद कासा, रययहारसंकासा, सुक्कलेसा उ वण्णओ ।
- उत्त० अ ३४ । गा८ । पृ० १०४६
(ग) सुक्कलेस्सा सुकिल्लएणं वन्नेणं साहिज्जइ ।
- पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२३२ | पृ० २६५
(घ) हंस-बलायादीणं सुक्कलेस्सा |
- षट्० पु १६ । पृ० ४८४
अंकरत्न, शंख, चन्द्र, कुंद-मोगरा, पानी, पानी की बूँद, दही, दहीपिण्ड, क्षीर दूध, खीर, शुष्क फली विशेष, मयुर पिच्छ का मध्यभाग, अग्नि में तपा कर शुद्ध किया हुआ रजतपट्ट, शरतकाल का मेघ, कुमुददल, पुंडरीक दल, शालिविष्टराजी, कुटज पुष्प राशी, सिंदुवार पुष्प की माला, श्वेत अशोक, श्वेत केनर श्वेत बन्धुजीव, मुचकन्द के फूल, दूध की धारा, रजतहार आदि के वर्ण की श्वेतता से अधिक इष्टकर, कंतकर, प्रीतिकर, मनोज, मनभावने श्वेतवर्णवाली शुक्ललेश्या होती है ।
पंचवर्ण में शुक्ललेश्या श्वेत शुक्ल वर्णवाली है ।
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(ङ) किण्हा भमर - सवण्णा णीला पुण णील-गुलिय संकासा । अद-वण्णा तेऊ तवणिज्ज-वण्णा ॥
काऊ पम्हा पउमसवण्णा सुक्का पुणु कासकुसुमसंकासा । वण्णंतरं च एदे हवंति परिमिता अनंता वा ॥ -- पंच० जीए । श्लो १८३-८४ । पृ० ३८
(
कृष्णलेश्या का वर्ण भौंरे के समान, नीललेश्या का वर्ण नील की गोली के समान, नीलमणि या मयूर कंठ के समान होता है । कापोतलेश्या का वर्ण कपोत ( कबूतर ) के समान होता है । तेजोलेश्या का वर्ण तपे हुए सोने के समान होता है । पद्मलेश्या का वर्ण पद्म गुलाबी रंग के कमल ) के समान होता है तथा शुक्ललेश्या का वर्ण काँस के फूल के समान श्वेत होता है । इन छहों लेश्याओं के वर्णान्तर या तारतम्य की अपेक्षा मध्यवर्ती वर्णों के भेद इन्द्रियों द्वारा ग्रहण करने की दृष्टि से संख्यात हैं, स्कन्धगत जातियाँ की अपेक्षा असंख्यात हैं तथा परमाणुगत भेद की अपेक्षा अनन्त हैं ।
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