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लेश्या-कोश ____टीका-मन्दलेश्याः सूर्याः न तु मनुष्यलोके निदाघसमये इव एकान्तोष्णरश्मय इत्यर्थः।
मंदलेश्या-सूर्य की वह लेश्या जो मनुष्य लोक के निदाघ समय के सूर्य के आतप के समान एकान्त उष्ण नहीं हो। ०४.३६ मंदाय वलेसा ( मन्दातपलेश्या )
-सूर० प्रा १६ । सू १०० मूल-x x x ता बहिया णं माणुस्सक्खेत्तस्स जे चंदिमसूरियगह जाव तारारूवा x x x मंदाय वलेसा x x x कूडा इव ठाणठिया ते पदेसे सव्वओ समंता ओभासेंति उज्जोवेंति तवेंति पभासेंति xxx।
टीका-'मन्दातपलेश्याः' मन्दा अनत्युष्णस्वभावा आतपरूपा लेश्या-रश्मिसंघातो येषां ते तथा । __मन्दातपलेश्या--आतपरूप लेश्या, जो स्वभाव से अति उष्ण नहीं होती है । तथा रश्मिसंघात से उत्पन्न होती है।
. यह मंदातपलेश्या मनुष्य क्षेत्र के बाहर स्थित चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र तथा तारागणों के होती है। -०४३७ रुइल्ललेसं ( रुचिरलेश्य )
-सम० सम ६ । सू १६-१७ ... मूल-बंभलोए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं x x x जे देवा x x x रुइल्लं x x x रुइल्ललेसं x x x रुइल्लुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं नव सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
टीका-x x x रुचिरादीन्येकादश विमाननामानि। ... रुचिरलेश्य-ब्रह्मलोक कल्प में एक विमान विशेष का नाम ।
ब्रह्मलोक कल्प में कई देवता रुचिर आदि ११ विमानों में उत्पन्न होते हैं । इन ११ विमानों में रुचिरलेश्य नाम का भी एक विमान है।
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