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लेश्या-कोश मूल-से किं तं लेसाणुवाय गई ? जल्लेस्साइ दवाई परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेसेसु उववजति, तं जहा-किण्ह लेसेसु वा जाव सुक्कलेसेसु वा, से तं लेसाणुवायगई।
___टीका-लेश्याया अनुपात:-अनुसरणं तेन गतिलेश्यानुपातगतिः, लेश्याया इत्यत्र वग्रहवेलायां कर्मणि षष्ठी, यतो वक्ष्यति-'यानि लेण्याद्रव्याणि पर्यादाय जीवः कालं करोति तल्लेश्येषुपजायते न शेषलेश्येषु' ततो जीवो लेश्याद्रव्याण्यनुसरति, न तु तानि जीवमनुसरन्ति ।
जब लेश्या के अनुपात-अनुसार जीव की परलोक की गति होती है वह लेश्यानुपातगति ।
मरणकाल के समय जीव जिन लेश्याद्रव्यों को ग्रहण करके मृत्यु को प्राप्त होता है वैसे ही लेश्याद्रव्यों में उसकी परभव में उत्पत्ति होती है। अतः जीव की गति लेश्याद्रव्य के अनुसार होती है, न कि लेश्याद्रव्य जीव का अनुसरण करता है।
.०४.५५ लेस्सातिव्व-मंददाए ( लेश्यातीव्र-मंदता)
-षट ० पु १६ । पृ० ५७२ टीका-लेस्सापरिणामे त्ति अणिओगद्दारे दस वित्थरपदाणि । तं जहा-x x x लेस्सातिव्व-मंदादाए ७ x xx।
लेश्यापरिणाम अनुयोगद्वार के दस विस्तार पदों में लेश्यातीव्र-मन्दता सातवाँ पद है। इसमें भावलेश्या का तीव्रतम-तीव्रतर-तीव्र-मंद-मंदतर-मंदतम संस्कार की अपेक्षा वर्णन किया गया है । देखो इसी पुस्तक का पृष्ट ४८८-८६ ।
०४.५६ लेस्सापच्चय विहाणे ( लेश्याप्रत्ययविधान )
-षट० पु १६ । पृ० ५७२
टीका-लेस्सापरिणामे त्ति अणियोगद्दारे दस वित्थरपदाणि । तं जहा-x x x लेस्सापच्चयविदाणे २ x x x।
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