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लेश्या-कोश ___कइ णं भंते ! लेस्साओ दुब्भिगंधाओ पनत्ताओ ? गोयमा ! तओ लेस्साओ दुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ, तंजहा–कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काऊलेस्सा । कइ णं भंते ! लेस्साओ सुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! तओ लेस्साओ सुभिगंधाओ पन्नत्ताओ, तंजहा-तेऊलेस्सा, पम्हलेस्सा, सुक्कलेस्सा।
-ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२१ । ( उत्तर केवल )
-पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२३६-४० । पृ० २६७ प्रथम तीन लेश्याएं दुर्गन्धवाली तथा पश्चात् की तीन लेश्याएं सुगन्धवाली हैं। (२) मनोज-अमनोज्ञ (तओ) अमणुनाओ, ( तओ) मणुनाओ।
-ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२० प्रथम तीन लेश्याएं ( रस की अपेक्षा ) अमनोज्ञ तथा पश्चात् की तीन लेश्याएं मनोज्ञ हैं। (३) शीत-रूक्ष-उष्ण-स्निग्ध ( तओ ) सीयलुक्खाओ, ( तओ) निद्ध हाओ।
-ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२१
-पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२४१ । पृ० २६७ प्रथम तीन लेश्याएं ( स्पर्श की अपेक्षा ) शीत-रूक्ष तथा पश्चात् की तीन लेश्याएं उष्ण-स्निग्ध हैं । (४) विशुद्ध-अविशुद्ध एवं तओ अविसुद्धाओ, तओ विसुद्धाओ।
-ठाण. स्था ३ । उ ४ । सू २२५
-पण्ण ० प १७ । उ ४ । सू १२४१ । पृ० २६७ प्रथम तीन लेश्याएं ( वर्ण की अपेक्षा ) अविशुद्ध, पश्चात् की तीन लेश्याएं विशुद्ध वर्णवाली हैं।
(ख) भावलेश्या के(१) धर्म-अधर्म
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