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लेश्या-कोश
७५ लेश्या शब्द का विवेचन निक्षेपों की अपेक्षा चार प्रकार का है, यथा-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ।
लेश्या दो प्रकार की है-ज्ञायक भवियशरीरी तथा तद्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त के दो भेद हैं—कार्मण तथा नोकामण । नोकामण के दो भेद हैं-जीवलेश्या तथा अजीवलेश्या । जीवलेश्या के दो भेद हैं-भवसिद्धिक तथा अभवसिद्धिक ।
औदारिक, औदारिकमिश्र आदि की अपेक्षा लेश्या के सात भेद हैं। या कृष्णादि ६ तथा संयोगजा सात भेद हो सकते हैं ।
अजीव नोकर्म द्रव्यलेश्या के दश भेद हैं, यथा-चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र तथा तारा लेश्या ; आभरण, छाया, दपण, मणि, कागणी लेश्या ।
द्रव्यकर्मलेश्या के छ भेद हैं, यथा-कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म तथा शुक्ल । भाव लेश्या के दो भेद हैं—विशुद्ध तथा अविशुद्ध । यिशुद्ध लेश्या के दो भेद हैं-उपशमकषाय लेश्या तथा क्षायिककषाय लेश्या ।
अविशुद्ध लेश्या के दो भेद हैं-रागविषय कषाय लेश्या तथा द्वेषविषय कषाय लेश्या।
नोकर्मद्रव्यलेश्या के दो भेद भी होते हैं—प्रायोगिक तथा विस्रसा। भाव की अपेक्षा जीव के उदय भाव में छहों लेश्याएं होती हैं।
लेश्या को समझाने के लिए जो चार प्रकार के निक्षेप किये गये है उन चारों के दो भेद होते हैं-आगम और नोआगम ।। नोआगम के तीन भेद होते हैं-ज्ञायकशरीर, भव्यशरीर तथा तद्व्यतिरिक्त । अध्यात्म के विकास के लिए लेश्या के भाव-अध्ययन को जानना चाहिए। (ख) एत्थ लेस्सा णिक्विविदव्वा, अण्णहा पयदलेस्सावगमाणुववत्तीदो। तं जहा-णामलेस्सा 8वणलेस्सा दव्वलेस्सा भावलेस्सा चेदि लेस्सा चउव्विहा।
लेस्सा-सदो णामलेस्सा। सब्भावासब्भावट्ठवणाए हव्विदव्व ट्ठवणलेस्सा ।
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