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लेश्या-कोश दव्वलेस्सा दुविहा-आगमदव्वलेस्सा णोआगमदव्वलेस्सा चेदि । आगमदव्वलेस्सा सुगमा। णोआगमदव्वलेस्सा तिविहा जाणुगसरीरभविय [ तव्वदिरित्तणोआगमदव्वलेस्साभेएण। जाणुगसरीरविय ] नोआगम दव्वलेस्साओ सुगमाओ। तव्वदिरित्तदव्वलेस्सा पोग्गलक्खंधाणं चक्खिंदियगेझो वण्णो । सो छव्विहो-किण्णलेस्सा णीललेस्सा काउलेस्सा तेउलेस्सा पम्मलेस्सा सुक्कलेस्सा चेदि । तत्थ भमरंगार-कजलादीणं किण्णलेस्सा। णिंब-कदली-दावपत्तादीणं णीललेस्सा। छारखर-कवोदादीणं काउलेस्सा। कुंकुम-जवाकुसुम-कुसुंभादीणं तेउलेस्सा । तडवडपउमकुसुमादीणं पम्मलेस्सा । हंस-बलायादीणं सुक्कलेस्सा। __ भावलेस्सा दुविहा-आगम-णोआगमभेएण। आगमभावलेस्सा सुगमा। णोआगम भावलेस्सा मिच्छत्तासंजम-कसायाणुरंजियजोगपवुत्ती कम्मपोग्गलादाणणिमित्ता, मिच्छत्तासंजम-कसायजणिदसंसकारो त्ति वुत्तं होदि।
--षट० पु १६ । पु० ४८४-५ लेश्या के निक्षेप के बिना प्रकृत लेश्या का अवगम नहीं हो सकता। लेश्या का निक्षेप इस प्रकार है-नामलेश्या, स्थापनालेश्या, द्रव्यलेश्या तथा भावलेश्या ।
'लेश्या' यह शब्द नामलेश्या कहा जाता है, सद्भावस्थापना और असद्भावस्थापना रूप से जो लेश्या की स्थापना की जाती है वह स्थापनालेश्या है।
द्रव्यलेश्या दो प्रकार की है-आगमद्रव्यलेश्या और नोआगमद्रव्यलेश्या ।
आगमद्रव्यलेश्या सुगम है।
नोआगमद्रव्यलेश्या तीन प्रकार की है-ज्ञायकशरीर, भविक और तद्व्यतिरिक्त ।
ज्ञायकशरीर और भविक नोआगमद्रव्यलेश्याएं सुगम हैं। चक्षुरिन्द्रिय के द्वारा ग्रहण करने योग्य पुद्गलस्कंधों के वर्ण को तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यलेश्या कहते हैं।
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