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लेश्या-कोश प्रथम तीन लेश्याएं दुर्गति में ले जानेवाली हैं तथा पश्चात् की तीन लेश्याएँ सुगति में ले जानेवाली हैं। (५) विशुद्ध-अविशुद्ध एवं तओ अविसुद्धाओ, तओ विसुद्धाओ। -ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२० । ( एवं व तओ बाद )
-पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२४१ । पृ० २६७ प्रथम तीन लेश्याएं ( परिणाम की अपेक्षा ) अविशुद्ध हैं तथा पश्चात् की तीन लेश्याएं विशुद्ध हैं। (६) शुभ-अशुभ काऊ णीलं किण्हं परिणमदि किलेसव डिद अप्पा । एवं किलेसहाणीवडिढ्दो होदि असुहतियं ।। तेऊ पउमे सुक्के सुहाणमवरादिअंसगे अप्पा । सुद्धिस्स य वडिढ्दो हाणीदो अण्णदा होदि ।।
-गोजी० गा ५०१-२ आत्मपरिणामों में संक्लेश की हानि-वृद्धि से प्रथम तीन लेश्याओं को अशुभ कहा गया है और आत्मपरिणामों में विशुद्धि की हानि-वृद्धि से अन्त की तीन लेश्याओं को शुभ कहा गया है।
०८ लेश्या पर विवेचन-गाथा
आगमों में लेश्या पर विवेचन विभिन्न अपेक्षाओं से किया गया है। तीन आगमों में यथा-भगवई, पण्णवणा तथा उत्तरज्झयण में लेश्या पर विशेष विवेचन किया गया है। विवेचन के प्रारम्भ में किन-किन अपेक्षाओं से विवेचन किया गया है इसकी एक गाथा दी गई है। भगवई तथा पण्णवणा में एक समान गाथा है तथा उत्तरज्झयणं में भिन्न गाथा है। ... (क) परिणाम-वन-रस-गन्ध-सुद्ध-अपसत्थ-संक्लिट्ठुण्हा । गइ - परिणाम - पएसो-गाह-वग्गणा-ठाणमप्पबहु॥
-भग० श ४ । उ १० । गा १ --पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२१८ । पृ० २६१
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