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लेश्या-कोश ०४.५२ लेस्साणियोगदारं ( लेश्याअनुयोगद्वार )
-षट० पु १६ । पृ० ४८४
लेस्साणियोगद्दारं असुर-सुर-णरवरोरग-मुणिंदविंदेहि वंदिए चलणे। णमियूण अरस्स तदो लेस्सणियोगं परवेमो ।।
-षट् ० पु १६ । पृ० ४८४ मूल-अग्गेणियस्स पुत्वम्स पंचमम्स वत्थुस्स चउत्थो पाहुडो कम्मपयडी णाम। तत्थ इमाणि चउवीसअणियोगद्दाराणि णादव्वाणि भवंति–कदि-वेयणाए x x x लेस्सा-लेस्सायम्मे लेस्सापरिणामे x x x अप्पाबहुगं च ।
__-षट० खं० ४ । भा १ । सू । ४५ । पु: । पृ० १३४ लेश्याअनुयोगद्वार—जिसमें लेश्याओं के सम्बन्ध में विविध प्ररूपण-निरूपण किया गया हो। यह षट् खण्डागम की १६वीं पुस्तक के १३वें अध्ययन का शीर्षक है।
__ अग्नायणी पूर्व की पञ्चम वस्तु के चतुर्थ प्राभृत का नाम 'कर्मप्रकृति' है। इसमें चौबीस अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं। इन चौबीस अनुयोगद्वारों में एक लेश्याअनुयोगद्वार भी है। इस अनुयोगद्वार में निक्षेप आदि के द्वारा लेश्याओं का वर्णन किया गया है। '०४.५३ लेस्साणिरूवणा ( लेश्यानिरूपणा)
--षट् ० पु १६ । पृ० ५७१ लेस्सा त्ति अणियोगदारे तत्थ इमाणि अट्ठ पदाणि। तं जहाx x x लेस्साणिरूवणा३ xxx ।
लेश्या अनुयोगद्वार के आठ पदों में लेश्यानिरूपणा तीसरा पद है। संभवतः इसमें विभिन्न दृष्टि से लेश्या का निरूपण-निर्धारण किया गया हो । '०४.५४ लेस्साणुवायगई (लेश्यानुपातगति )
--पण्ण० प १६ । सू १११७
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