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लेश्या-कोश
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मूल- एवं से अहा - किट्टियमेव धम्मं समहिजाणमाणे, संते विरते सुसमाहितलेसे |
शीलांक टीका - शोभना समाहता गृहीता लेश्या अन्तःकरणवृत्तयस्तैजसीप्रभृतयो वा येन स समाहितलेश्यः ।
सुसमाहितलेश्य --- जिसने शुभ लेश्याओं का ग्रहण किया हो तथा जिसके अन्तःकरण में तेज, पद्म और शुक्ललेश्याओं में से कोई एक लेश्या परिणमन कर रही हो ।
०४८५ सुहस्सा ( शुभलेश्या )
- जीवा० प्रति ३ । उ २ । सू १७६
मूल - बहियाणं भंते! मणुस्सखेत्तस्स जे चंदिमसूरियगहणक्खततारारूवा ते णं भंते ! x x x दिव्वाइ भोगभोगाइ भुंजमाणा जाव सुहलेसा xxx ते पदेसे सव्वओ समंता ओभार्सेति उज्जोवेंति तवंति पभासेंति ।
टीका - शुभलेश्याः ; एतच्च विशेषणं चन्द्रमसः प्रति, तेन नातिशीततेजसः किन्तु सुखोत्पाद हेतुपरमलेश्याका इत्यर्थः ।
शुभलेश्या चन्द्रमा का विशेषण है । यह न तो अति शीतल होती है और न अति तप्स, अतः सुखानुभूति का कारण होने से इसे परम - उत्तम लेश्या कहा गया है ।
०४-८६ सुहलेसो (शुभलेश्य )
— विशेभा० ० गा २१२२, २४
मूल - तित्थयरनामगोत्तं बद्ध मे वेइयव्वं ति ।। २१२२ उत्तरार्द्ध नियमा मणुयगईए इत्थी पुरिसेयरो व सुहलेसो । आसेवियबहुलेहिं बीसाए अन्नयरएहिं ।। २१२४
टीका - तीर्थकर इति नामगोत्रं संज्ञा यस्य तत् तीर्थकरनामसंज्ञकं कर्म पूर्व मया बद्ध तदिदानीमनेन प्रकारेण वेदितव्यम् ।
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