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लेश्या-कोश '०४.८६ सूरियसुद्धलेसे ( सूर्यवच्छुद्धलेश्य )
-सूय० श्रु १ । अ ६ । गा १३ मूल–महीए मज्झमि ठिते णगिंदे, पन्नायते सूरियसुद्धलेसे । ... एवं सिरिए उ स भूरिवन्ने, मणोरमे जोयइ अच्चिमाली ।। टीका-'सूर्यवच्छुद्धलेश्यः'-आदित्यसमानतेजाः।
सूर्यवच्छ्रद्धलेश्य-यह सुमेरु पर्वत का विशेषण है। इसकी कान्ति की उपमा सूर्य की ज्योति से दी गई है अर्थात् इसकी कान्ति सूर्य की शुद्ध ज्योति के समान है। .०४.६० सोमलेसा ( सोमलेश्या )
-ओव० सू २७ मूल-तेणं कालेणं तेणं समए णं समणस्स भगवओ महावीरस अंतेवासी बहवे अणगारा भगवंतोxxx चंदो इव सोमलेस्सा xxx।
टीका-'चंदो इव सोमलेस्स' त्ति अनुपतापमनः परिणामाः।
सोमलेश्या-चन्द्रमा की ज्योति जिस प्रकार अनुपतापकारी होती है उसी प्रकार सोमलेश्या वाले के मन का परिणाम अनुपतापकारी होता है।
भगवान् महावीर के बहुत से अन्तेवासी-शिष्यों की लेश्या (मनःपरिणाम ) चन्द्रमा की ज्योति के समान अनुपतापकारी थी।
.०५ परिभाषा के उपयोगी पाठ .०५.१ द्रव्यलेश्या की परिभाषा के उपयोगी पाठ .०५.१.१ वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श ।
कण्हलेसा णं भन्ते ! कइ वण्णा, कइ रसा, कइ गन्धा, कइ फासा पन्नत्ता ? गोयमा! दव्वलेस्सं पडुच्च पंचवण्णा, जाव अट्ठफासा पनत्ता x x x एवं जाव सुक्कलेस्सा।
-भग० श १२ । उ ५ । सू ११७ । पृ० ५६६
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