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लेश्या-कोश xxx तच्च नियमाद् मनुष्यगतावेव प्रारम्भमाश्रित्य सम्यग्दष्टिमनुष्यो बध्नाति, नान्यगतावन्यः। कथंभूतो मनुष्यः ? इत्याहस्त्री, पुरुषः, इतरो वा पुरुषनपुंसकवेदको मन्त्रादिकारणरुपह्रतपुरुषवेदः सन् यो नपुंसकः, न तु क्लिष्टः पण्डकादिरित्यर्थः। कथंभूतः पुनः म्न्यादिः ? इत्याह-सम्यग्दर्शनादियुक्तत्वात् शुभलेश्यः ।
शुभलेश्य-शुभ लेश्या से युक्त ।।
जो जीव तीर्थङ्कर तामकर्म बाँधता है वह नियम से मनुष्यगति का होता है तथा उसके सम्यग्दृष्टि सहित शुभलेश्या रहती है। . ०४.८७ सूरलेसं ( सूरलेश्य )
--सम० सम ५ । सू १८-१६ - (मूल सम० )-सणंकुमारमाहिंदेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं xxx जे देवा x x x सूरलेसं xxx सूरुत्तरवडेंसगं देवत्ताए उववष्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं पंचसागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।
सूरलेश्य-सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्प के एक विमान विशेष का नाम ।
सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्प में कई देवता सूर आदि १२ विमानों में उत्पन्न होते हैं । इन १२ विमानों में सूरलेश्य नाम का भी एक विमान है।
०४.८८ सूरलेसादी ( सूर्यलेश्या)
-सूर० प्रा १६ । सू८७
मूल-ता सूरलेसादी य आयवेइ य आतवेइ य सूरलेसादी य के अह किलक्खणे ? ता एगठ्ठ एगलक्खणे ।
टीका-आतप इति सूर्यलेश्या इति यदि वा सूर्यलेश्या इति आतप इति ।
सूर्यलेश्या-सूर्य के आतप को सूर्यलेश्या कहते हैं अथवा सूर्यलेश्या को सूर्य का आतप कहते हैं । आतप और सूर्यलेश्या दोनों शब्द एकार्शवाची हैं।
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