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लेश्या-कोश ___ जदि कसाओदएण लेस्साओ उच्चंति तो खीणकसायाणं लेस्साभावो पसज्जदे ? सच्चमेदं जदि कसाओदयादो चेव लेस्सुप्पत्ती इच्छिज्जदि। किंतु सरीरणामकम्मोदयजणिदजोगो वि लेस्सा त्ति इच्छिज्जदि, कम्मबंधणिमित्तत्तादो। तेण कसाए फिट्ट वि जोगो अस्थि त्ति खीणकसायाणं लेस्सत्तं ण विरुज्झदे। जदि बंधकारणाणं लेस्सत्तं उच्चदि तो पमादस्स वि लेस्सत्तं किण्ण इच्छिज्जदि ? ण, तस्स कसाएसु अंतब्भावादो। असंजमस्स किण्ण इच्छिज्जाद ? ण, तम्स वि लेस्साकम्मे अंतब्भावादो। मिच्छत्तस्स किण्ण इच्छिज्जदि ? होदु तस्स लेस्साववएसो, विरोहाभावादो। किंतु कसायाणं चेव एत्थ पहाणत्तं हिंसादिलेस्सायम्मकारणादो, सेसेसु तदभावादो।
-षट् ० खं० २ । १ । सू ६१ । टीका । पु ७ । पृ० १०४-१०५ उदय में आये हुए कषायानुभाग के स्पर्धकों में जघन्य स्पर्धक से लेकर उत्कृष्ट स्पर्धक पर्यन्त स्थापित करके उनको छ: भागों में विभक्त करने पर प्रथम भाग मन्दतम कषायानुभाग का होता है और उसके उदय से उत्पन्न कषाय का नाम 'शक्ललेश्या' है। दूसरा भाग मन्दतर कषायानुभाग का है तथा उसके उदय से उत्पन्न कषाय का नाम 'पद्मलेश्या' है। तृतीय भाग मन्द कषायानुभाग का है तथा उसके उदय से उत्पन्न कषाय का नाम 'तेजोलेश्या' है। चतुर्थ भाग तीव्र कषायानुभाग का है तथा उसके उदय से उत्पन्न कषाय का नाम 'कापोतलेश्या' है। पाँचवाँ भाग तीव्रतर कषायानुभाग का है तथा उसके उदय से उत्पन्न कषाय का नाम 'नीललेश्या' है। छट्ठा भाग तीव्रतम कषायानुभाग का है तथा उसके उदय से उत्पन्न कषाय का नाम 'कृष्णलेश्या' है। जिस कारण से ये छहों लेश्याएं कषायों के उदय से होती हैं, अतः लेश्याएं औदयिक हैं।
यदि कषायों के उदय से लेश्याओं की उत्पत्ति मानी जाती है, तो बारहवें गणस्थानवर्ती क्षीणकषायी जीवों में लेश्या के अभाव का प्रसंग आ जाता है। यदि केवल कषायोदय को ही लेश्या की उत्पत्ति का कारण तो माना जाता है तो यह ठीक है किन्तु शरीर नामकर्म के उदय से उत्पन्न योग को भी लेश्या का कारण माना जाता है। क्योंकि वह भी कर्मबन्ध का निमित्त होता है इसलिए कषाय के नष्ट हो जाने पर भी क्षीणकषायी जीवों के योग रहता है, अतः उन जीवों को सलेशी मानने में कोई आपत्ति नहीं आती है।
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