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लेश्या-कोश
लेश्यापरिणाम अनुयोगद्वार के दस विस्तार पदों में लेश्याप्रत्यय विधान दूसरा पद है। जिससे लेश्या की प्रतीति-बोध हो ऐसा विधान जिसमें किया गया हो।
०४.५७ लेस्सापडिग्घाएणं ( लेश्याप्रतिघात )
-भग० श८ । उ ८ । सू ३३१
मूल-जंवुद्दीवे दीवे सूरिया xxx लेम्सापडिग्घाएणं उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, x x x लेस्सापडिग्याएणं अत्थमणहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति ।
टीका-समभूतलापेक्षया सर्वत्रोच्चत्वमष्टौ योजनशतानीति कृत्वा । लेस्सापडिग्याएणं ति । तेजसः प्रतिघातेन दूरतरत्वात्तदेशस्य तदप्रसरणेनेत्यर्थः, लेस्साप्रतिघाते हि सुखदृश्यत्वेन दूरस्थोऽपि स्वरूपेण सूर्य आसन्नप्रतीतिं जनयति ।
लेश्याप्रतिघात--सूर्य की लेश्या का प्रतिघात—सूर्य की किरणों की प्रखरता में कमी होना । इस प्रतिघात से दूरस्थ सूर्य नजदीक प्रतीत होता है ।
यद्यपि समतल पृथ्वी से सूर्य की दूरी सदा आठ सौ योजन की रहती है, परन्तु सूर्य की लेश्या-ज्योति का ( अन्य पुद्गलों के द्वारा ) प्रतिघात होने से सुखपूर्वक दृश्यमान होने के कारण सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य आसन्न प्रतीत होता है। ०४.५८ लेस्सापदविहाणे ( लेश्यापदविधान )
-पट० पु १६ । पृ० ५७२ टीका-लेस्सापरिणामे त्ति अणियोगद्दारे दस वित्थरपदाणि । तं जहा- x x x लेस्सापदविहाणे ३ x x x ।
लेश्यापरिणाम अनुयोगद्वार के दस विस्तार पदों में लेश्यापदविधान तीसरा पद है । सम्भवतः इसमें लेश्या का पद-शब्द रूप से विवेचन किया गया है । '०४.५६ लेस्सापरावत्ति ( लेश्यापरावृत्ति-लेश्यापरिवर्तन )
-षट् ० खं १ । सू २६७ । पु ४ । पृ० ४६६
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