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लेश्या-कोश टीबा-एको मिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी वा वड्ढमाण तेउलेस्सिओ एगसमओ तेउलेस्साए अस्थि त्ति संजमासंजमं पडिवण्णो । एगसमयं संजमासंजमं तेउलेस्साए सह दिट्ठ। विदियसमए संजदासंजदो पम्मलेस्सं गदो। एसा लेस्सापरावत्ती।
लेश्यापरावृत्ति-एक लेश्या से दूसरी लेश्या में परिवर्तन ।
कोई एक मिथ्यादृष्टि या असंयतसम्यग्दृष्टि वर्धमान तेजोलेशी जीव तेजोलेश्या-काल का एक समय अवशेष रहने पर संयतासंयत गुणस्थान को प्राप्त हुआ। उस एक समय की अवधि में संयतासंयत गुणस्थान में तेजोलेश्या के साथ देखा गया। दूसरे समय में वह संयतासंयत जीव पद्मलेश्या को प्राप्त हुआ। इस प्रकार एक लेश्या से दूसरी लेश्या की प्राप्ति को लेश्यापरावृत्ति कहा जाता है।
०४ ६० लेस्सापरिणामे ( लेश्यापरिणाम )
-षट् ० पु १६ । पृ० ४६३ ---षट ० खं ४ । सू ४५ । पु ६ पृ० २३४
टीका-लेस्सापरिणामे त्ति अणियोगद्दारं काओ लेस्साओ केण सरूवेण काए वड्ढीए हाणीए वा परिणमंति त्ति जाणावणहमागयं पु १६ ___टीका-लेस्सापरिणामे त्ति अणियोगदारं जीव-पोग्गलाणं दव्वभावलेस्साहि परिणमणविहाणं वण्णेदि । पुह
लेश्यापरिणाम-एक लेश्या का स्वस्थानों में अथवा अन्य लेश्या में परिणमन करना । यह परिणमन षटस्थान हानि-वृद्धि के द्वारा होता है।
षटखण्डागम में वणित २४ अनुयोगद्वारों में लेश्यापरिणाम' नाम का एक अनुयोगद्वार है, जिसमें जीव और पुद्गलों की द्रव्यलेश्या और भावलेश्या के नियमों का वर्णन किया गया है। लेश्यापरिणाम अनुयोगद्वार का वर्णन षट्खण्डागम की १६वीं पुस्तक में आया है। ०४.६१ लेस्साभिताव ( लेश्याभिताप )
-भग० श८ उ८ । सू ३३१
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