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लेश्या-कोश ताफासत्ताए परिणमति, एवं काउलेसावि तेउलेस्सं, तेउलेसावि पम्हलेसं, पम्हलेसावि सुक्कलेसं पप्प तारूवत्ताए जाव परिणमति, से तं लेस्सागई।
टीका-लेश्यागतिर्यत्तिर्यमनुष्याणां कृष्णादिलेश्याद्रव्याणि नीलादिलेश्याद्रव्याणि सम्प्राप्य तद्र, पादित या परिणमंति सा लेश्यागतिरिति ।
लेश्यागति--एक लेश्याद्रव्य का दूसरे लेश्याद्रव्य को प्राप्त कर उसके वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श में पूर्ण रूप से परिणमन करना ।
कृष्णलेश्याद्रव्य नीललेश्या के द्रव्यों को प्राप्त कर नीललेश्या के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श रूप में पूर्णतया परिणमित हो जाता है, उसी प्रकार नीललेश्याद्रव्य कापोतलेश्या रूप, कापोतलेश्याद्रव्य तेजोलेश्या रूप, तेजोलेश्याद्रव्य पद्लेश्या रूप तथा पद्मलेश्याद्रव्य शुक्ललेश्या रूप में परिणमित हो जाता है। यह लेश्यागति तिर्यञ्च और मनुष्यों के ही होती है ।
'०४४७ लेस्साहाणपरूवणा (लेश्यास्थानप्ररूपणा)
-षट ० पु १६ । पृ० ५७२ टीका-लेस्सा त्ति अणियोगदारे तत्थ इमाणि अट्ठ पदाणि । तं जहा-xxx लेस्साहाणपरूवणा ७ xxx। ____टीका-लेस्सापारणामे त्ति अणियोगद्दारे दस वित्थरपदाणि । तं जहा-xx x लेस्साहाणपरूवणा ८ xxx।
लेश्या अनयोगद्वार के आठ पदों में लेश्यास्थानप्ररूपणा सातवाँ पद है तथा लेश्यापरिणाम अनुयोगद्वार के दस विस्तार पदों में आठवाँ पद है। संभवतः इसमें लेश्या के षट्गुण हादि-वृद्धि रूप स्थानों का वर्णन किया गया हो । ( देखो इसी पुस्तक के पृष्ठ ४६३ से ४६७ तक )। ०४.४८ लेस्साहाणप्पाबहुए (लेश्यास्थान-अल्पबहुत्व )
-षट० पु १६ । पृ० ५७२ टीका-लेस्साकम्मे त्ति अणिओगदारे पंचविधियपदाणि। तं जहा x x x लेस्साहाणप्पाबहुए ३ xxx।
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