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लेश्या-कोश ०४.३३ बंभलेसं (ब्रह्मलेश्य )
--सम० सम ११ । सू १२-१३ मूल-लंतए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं एकारस-सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । जे देवा बंभं x x x बंभलेसं x x x बंभुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं एकारस-सागरोवमाइ ठिई पण्णत्ता।
टीका-ब्रह्मादीनि द्वादश विमाननामानि । ब्रह्मलेश्य---लांतव कल्प में एक विमान विशेष का नाम ।
लान्तव कल्प में कई देवता ब्रह्म आदि १२ विमानों में उत्पन्न होते हैं इन १२ विमानों में ब्रह्मलेश्य नाम का भी एक विमान है। '०४.३४ भावलेसं (भावलेश्या)
-भग० श १२ । उ ५ । प्र १६
-गोजी० गा ५३५ मूल (भग०) कण्हलेसाणं भन्ते ! कइ वण्णा (जाव कइ फासा) पुच्छा। गोयमा! x x x भावलेस्सं पडुच्च अवण्णा (जाव अफासा ) पन्नत्ता, एवं जाव सुक्कलेस्सा ।
मूल (गोजी०)-मोहुदयखओवसमोवसमखयजजीवफंदणं भावो।
भावलेश्या वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्शरहित अपौद्गलिक होती है । भावलेश्या भीव के अन्तःपरिणाम विशेष को कहते हैं। भावलेश्या कृष्ण यावत् शुक्ल छः प्रकार की होती है।
गोम्मटसार के अनुसार मोहनीय कर्म के उदय, क्षयोपशम, उपशम या क्षय जनित जीव-प्रदेशों के स्पन्दन-परिणाम को भावलेश्या कहते हैं। ०४.३५ मंदलेसा ( मन्दलेश्या)
-सूर० प्रा १६ । सू १०० । गा ३८ गा-सूरंतरिया चंदा चंदंतरिया दिणयरा दित्ता ।
चित्तंतरलेसागा सुहलेसा मंदलेसा य ।।
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