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. कहीं-कहीं अशुभ योग रूप प्रमाद के छः प्रकारों का उल्लेख मिलता है।'
(१) मद्य प्रमाद, (२) निद्रा प्रमाद, (३) विषय प्रमाद, (४) कषाय प्रमाद, (५) द्युतप्रमाद और (६) प्रतिलेखना प्रमाद ।
तीर्थङ्करों के जन्मादि कल्याण के समय नारकी जीवों को भी उस समय सुख की अनुभूति होती है। नारकी में उस समय प्रकाश होता है, यथा
१-सातवीं नारकी में-तारा के समान प्रकाश होता है। २-छट्टी नारकी में-नक्षत्र के समान प्रकाश होता है । ३-पांचवीं नारकी में--ग्रह के समान प्रकाश होता है। ४-चौथी नारकी में बादल से आच्छादित चंद्र के समान प्रकाश होता है। ५-तीसरी नारकी में-चन्द्र के समान प्रकाश होता है। ६-दूसरी नारकी में बादल से आच्छादित सूर्य के समान प्रकाश होता है। ७-पहली नारकी में सूर्य के समान प्रकाश होता है।
छः स्थान : जीवों के लिए सुलभ नहीं है। अर्थात् दुर्लभ है, यथा-(१) मनुष्यभव, (२) आर्य क्षेत्र में जन्म, (३) सुकुल में उत्पन्न होना, (४) केवली प्रज्ञप्त धर्म का सुनना, (५) सुने हुए पर धर्म श्रद्धा और (६) अद्धित, प्रतीत तथा रोचित धर्म पर सम्यक कायस्पशे-आचरण ।
योगान्तर्गत द्रव्यों में कषाय के उदय को बढ़ाने का सामर्थ्य है, जैसे पित्त के प्रकोप से क्रोध की वृद्धि होती है।
प्रदेशी राजा की तपस्या के पारणे में पत्नी सुरिकता ने विष मिश्रित भोजन दिया। फलस्वरूप आलोचना कर तेजोलेश्या में मरण को प्राप्त होकर सौधर्म देवलोक में देव हुआ। कहा है
हत्थिस्स य कुथुस्स य समे चेव जीवे । से णूणं भंते ! हथिओ कुथू अप्पकम्मतराए चेव अप्पकिरियतराए चेव अप्पासवतराए चेव अप्पाहारतराए चेव अप्पनीहारतराए चेव अप्पुस्सासतराए चेव १. ठाण० स्था ६ । सू ४४ । २. नेरिया पिण पामै मद मोद, तुज्झ कल्याण सुर करत विनोद
चौबीसी ढाल २२वीं ३. ठाण० स्था६ । सू १३
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