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प्रश्वास से लेकर सम्पूर्ण जीवन जीने की कला का प्रशिक्षण ही जीवन विज्ञान है। जीवन विज्ञान का मुख्य प्रयोग है-प्रेक्षाध्यान, जो स्वयं से स्वयं में देखने की प्रक्रिया है। प्रेक्षाध्यान में दीर्घश्वास प्रेक्षा, समवृत्ति श्वास, प्रेक्षा, शरीर प्रेक्षा, लेश्याध्यान ( रंगप्रेक्षा ) कायोत्सर्ग, अनुप्रेक्षा आदि के प्रयोग कराये जाते हैं । भावधाराओं को उत्पन्न करने वाली अन्तःस्रावी ग्रन्थियों और हाथमोथेलेमस जैसे केन्द्रों पर रंग के साथ ध्यान करना बहुत ही प्रभावकारी सिद्ध हुआ है। विज्ञान ने आज यह सिद्ध कर दिया है कि रंगों की हमारी भावधारा पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
___ भगवान महावीर के प्रमुख १० श्रावक थे—यथा-१-आनन्द, २-कामदेव, ३-चुलणी पिता, ४-सुरादेव, ५-चुल्लशतक, ६-कुडकौलिक, ७--सद्दालपुत्र, ८-महाशतक, ६-नन्दिनी पिता और १०-लेइया पिता ।
ये दसों श्रावक संथारा-संलेखना कर तेजोलेश्या में मरण प्राप्त कर सौधर्म देवलोक में देव रूप में उत्पन्न हुए। सब एकावतारी हैं।
यद्यपि गणधर गौतम को संक्षिप्त विपुल तेजोलेश्या प्राप्त थी लेकिन उन्होंने इस लब्धि का प्रयोग नहीं किया।
समणस्स भगवओ महावीर जे? अंतेवासी इदभूई नाम अणगारे गोयमसगोत्ते णं सत्तुस्सेहे x x x संखित्तविउलतेयतेस्से छट्ट छट्टेणं अणि क्खित्तेणं तवो कम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेभाणे विहरइ ।
-उवा० अ १ । सू ६६ अर्थात् भगवान महावीर के ज्येष्ठ अंतेवासी इन्द्रभूति जिनका देह परिमाण सात हस्त का था। संक्षिप्तविपुल लेश्या भी थी।
_ भगवान महावीर का आठवां श्रावक महाशतक था । अनशन में अवधि ज्ञान उत्पन्न हुआ।
तएणं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स सुभेणं अज्झवसाणणं सुभेणं परिणामेणं लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं, तदावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ओहिणाणे समुप्पण्णे xxx ।
-उवा० अ ८ । सू ३७
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