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गृद्धपिच्छाचार्य अपर नाम उमास्चाति के द्वारा विरचित तत्त्वार्थ सूत्र एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है, जो दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायों में प्रतिष्ठित है।
जवास्फटिक न्याय अर्थात् जवापुष्प लाल रंग का होता है उसको स्फटिक में पिरोने से लाल रंग का दिखाई देता है। सांख्यदर्शन के कर्मफल भोग पर यह दृष्टांत दिया जाता है।
गर्भस्थ मनुष्य और तिर्यंच में छओं लेश्या होती है। शुक्लथ्यान अलेशो को भी होता है। आर्त-रौद्र-धर्मध्यान अलेशी को नहीं होता, सलेशी को होता है।
सूर्य के विमान से सौ योजन ऊपर शनैश्चर ग्रह का विमान है और वहीं तक ज्योतिषी चक्र की सीमा है, अतः इससे ऊपर सूर्य का तापक्षेत्र नहीं है । जम्बूद्वीप के पश्चिम महाविदेह से जयंतद्वारं की ओर लवण समुद्र के समीप की समभूमि से ८०० योजन ऊँचा सूर्य का विमान है। कहा है
एयंसि णं एमहालयंसि लोगंसि नत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे जत्थ णं अयं जीवेणं जाए वा न मए वा वि ।
-विया० स १२ । उ उ ७ । सू३ । १-२ अर्थात् इस लोक में ऐसा कोई प्रदेश नहीं है, जहाँ अनेक बार जीव उत्पन्न हुआ और मरा नहीं।
एक रज्जूलोक का प्रमाण-कोई देव एक हजार भार वाले लोहे के गोले को अपनी समन शक्तिपूर्वक आकाश से फेंके और वह लोह गोलक ६ माह, ६ दिन, ६ घड़ी, ६ पल में जितना क्षेत्र लांघ जाए उतना क्षेत्र एक रज्जूलोक कहलाता है।
समुच्चय जीव में छः लेश्याएं होती है। मनुष्य में, मनुष्य स्त्री में, कर्मभूमिज मनुष्य और कर्मभूमिज मनुष्य स्त्री में छः-छः लेश्याए पाती है। भरत-ऐरभरत क्षेत्र के मनुष्य में, भरत-ऐरभरत क्षेत्र की मनुष्य स्त्री में तथा पूर्व-पश्चिम महाविदेह के मनुष्य में और पूर्व-पश्चिम महाविदेह की मनुष्य स्त्री में छः-छः लेश्याए पाती है। अकर्मभूमिज मनुष्य और अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्री में तथा छप्पन अंतर्दीपज मनुष्य और छप्पन अंतीपज मनुष्य स्त्री में चार-चार लेश्याए होती है। हेमवय, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यक वर्ष, देवकुरु, उत्तरकुरु के मनुष्य और
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