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साथ पांच पदों का ध्यान संघ जाए तो साधक काफी गहराई में उतर सकता है । जीवाभिगम सूत्र में कहा है
नेरइया सत्तविहा पन्नत्ता, तं जहा -- रयणप्पभापुढविनेरइया जाव असत्तमपुढविनेरइया xxx तिविहा दिट्ठी xxx
- जीवा० प्रति० १ । सू ३२
अर्थात् रत्नप्रभा नारको यावत् सातवीं नारकी में तीनों दृष्टि होती है, यथा - सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग् मिथ्यादृष्टि ।
जो मनुष्य या संज्ञी तिर्यच कृष्ण लेश्या में मरण को प्राप्त होकर नारकी में उत्पन्न होते हैं, वे फिर नारकी से मरण को प्राप्त कर मनुष्य या तिच पंचेन्द्रियादि में उत्पन्न हो जाते हैं परन्तु उस मनुष्य भव में अंतंक्रिया नहीं कर सकते हैं ।
जंबूद्वीप की जगती के ऊपर और पद्मवरवेदिका के अन्दर भाग में एक बड़ा वन खण्ड है । यहाँ पद्मवरवेदिका का व्यवधान होने से तथाविध वायु का आघात न होने से शब्द नहीं होता है । यहाँ बहुत से वानव्यन्तर देवी व देव स्थित होते हैं, लेटते हैं खड़े रहते हैं, बैठते हैं, करवट बदलते हैं, रमण करते हैं, इच्छानुसार क्रियाएं करते हैं, क्रीड़ा करते हैं, रति क्रीड़ा करते हैं और अपने पूर्व भव में किये गये पुराने अच्छे धर्माचरणों ( प्रशस्त लेश्यादि शुभ अनुष्ठान ) का सुपराक्रम तप आदि का व शुभ पुण्यों का किये हुए शुभ कर्मों का कल्याणकारी फल विपाक अनुभव करते हुए विचरण करते हैं ।' अर्थात् पूर्व भव में प्रशस्त लेश्या, शुभ अध्यवसाय, शुभ परिणाम से बहुत सारे कर्मों की निर्जरा की थी ।
देवों में भाषा व मनः पर्याप्ति - एक साथ पूर्ण होने के कारण उनके एकत्व की विवक्षा की गई है । प्रत्येक चन्द्र, सूर्य के परिवार में २८ नक्षत्र, ८८ ग्रह ६६६७५ कोड़ाकोड़ी तारागण हैं ।
जघन्य लेश्या स्थान के परिणाम के परिणाम के कारण उत्कृष्ट होते हैं गुणों के भेद से असंख्यात होते हैं ।
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१. जीवाभिगम प्रति० ३ जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति
कारण जघन्य और उत्कृष्ट लेश्या के ये जघन्य - उत्कृष्ट स्थान परिणाम और जैसे स्फटिक मणि जघन्य रक्त अलक्तक
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