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लेश्या-कोश
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टीका- चरमलेश्यान्तर्गताः - चरमलेश्याविशेषसंस्पर्शिनः पुद्गलास्तेऽपि सूर्यलेश्यां प्रतिघ्नन्ति तैरपि चरमलेश्यासंस्पर्शितया चरमलेश्यायाः प्रतिहन्यमानत्वात् ।
"
चरमलेश्यातर्गत — एक विशेष प्रकार के पुद्गल । ये पुद्गल चरमलेश्या ( ज्योतिविशेष ) के अन्तः प्रविष्ट - संस्पर्शित होकर रहते हैं । ये पुद्गल सूर्य की लेश्या -- किरण को प्रतिहत करने में समर्थ होते हैं ।
०४-१५ चंदलेसं ( चन्द्रलेश्य )
- सम० सम ३ । सू २०-२१
मूल -- सण कुमार - माहिंदेस कप्पे अत्थेोगइयाणं देवाणं x x x जे देवा x x x चंदं x x x चंदलेस x x x चंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उबवण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं तिष्णि सागरोवमाइ ठिई पण्णत्ता |
चन्द्रलेश्य -- सनत्कुमार- माहेन्द्र कल्प के एक विमान विशेष का नाम
सनत्कुमार माहेन्द्र कल्प में कई देवता चन्द्र आदि ११ विमानों में उत्पन्न होते हैं । इन ११ विमानों में चन्द्रलेश्य ग्राम का भी एक विमान है ।
०४ १६ चंदलेसादी ( चन्द्रलेश्या )
-सूर० प्रा १६ । सू ८७
मूल - Xxxता चंदलेसादी य दोसिणादी य दोसिणाई य चंदलेसादी य के अटूट्ठे किंलक्खणे ? ता एगट्ठे एगलक्खणे ।
टीका- 'चंदलेसाइ' इत्यादि x x x चन्द्रलेश्या इति ज्योत्स्ना इत्यनयोः पदयोरानुपूर्व्या अनानुपूर्व्या वा व्यवस्थितयोरेक एवअभिन्न एवार्थः, य एव एकस्य पदस्य वाच्योऽर्थः स एव द्वितीयस्यापि पदस्येति भावः ।
चन्द्रलेश्या- - चन्द्रमा की ज्योत्स्ना को चन्द्रलेश्या कहते हैं या चन्द्रमा की लेश्या को चन्द्रज्योत्स्ना कहते हैं । चन्द्रलेश्या और चन्द्रज्योत्स्ना दोनों शब्द एकार्थवाची हैं ।
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