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लेश्या-कोश ०४.१७ चित्तंतरलेसागा (चित्रान्तरलेश्याक )
-जीवा० प्रति ३ । उ २ । सू १७७ । गा २६ टीका-'चित्रान्तरलेश्याकाः' चित्रमन्तरं लेश्या च प्रकाशरूपा येषां ते तथा, तत्र चित्रमन्तरं चन्द्राणां सूर्यान्तरित्वात् सूर्याणां चन्द्रान्तरित्वात चित्रा लेश्या चन्द्रमसां शीतरश्मित्वात् सूर्याणामुष्णरश्मित्वात् ।
चित्रान्तरलेश्याक-यह मानुषोत्तर पर्वत से बाहर अवस्थित चन्द्रमाओं और सूर्यों का एक विशेषण है, क्योंकि इनकी लेश्या प्रकाश रूप और चित्रान्तर होती है। चन्द्रमाओं का प्रकाश सूर्य के प्रकाश से मिलने से तथा सूर्यों का प्रकाश चन्द्रमा के प्रकाश से मिलने से जो चित्रता-विचित्रता उत्पन्न होती है वह चित्रान्तर । चित्रान्तरलेश्या की उत्पत्ति चन्द्रमा की शीतरश्मि तथा सूर्प की उष्णरश्मि के मिलन से होती है। इस मिलन से उत्पन्न लेश्या-प्रकाश-विशेष को चित्रान्तरलेश्या कहा गया है।
०४.१८ छिण्णलेस्साओ (छिन्नलेश्या )
-सूर० । प्रा ६ । सू ३० मूल-ता जाओ इमाओ चंदिमसूरियाणं विमाणे हितो लेसाओ बहिया ( उच्छूटा ) अभिणिसट्ठाओ पताति, एतासि णं लेसाणं अंतरेसु अण्णतरीओ छिण्णलेस्साओ संमुच्छंति, तए णं ताओ छिण्णलेस्साओ संमुच्छियाओ समाणीओ तदणंतराइ बाहिराइ पोग्गलाई संतावति ।
टीका-या इमाः प्रत्यक्षत उपलभ्यमानाश्चन्द्रसूर्याणां देवानां सत्केभ्यो विमानेभ्यो लेश्या उच्छूढाः ; एतदेव व्याचष्टे-अभिनिःमृतास्ताः प्रतापयन्ति-बाह्य यथोचितमाकाशवति प्रकाश्यं प्रकाशयन्ति, एतासां चेत्थं विमानेभ्यो निःसृतानां लेश्यानामन्तरेषुअपान्तरालेष्वन्यतराश्छिन्नलेश्याः संमूर्च्छन्ति, ततस्ता मूलच्छिन्ना लेश्याः सम्मूच्छिताः सत्यस्तदनन्तरान् बाह्यान पुद्गलान् संतापयन्ति ।
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