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.०० शब्द-विवेचन '०१ व्युत्पत्ति .०१.१ प्राकृत शब्द 'लेस्सा' की व्युत्पत्ति
रूप = लेसा, लेस्सा। लिंग स्त्रीलिंग। धातु-लिस ( स्वप् ) सोना, शयन करना ।
लिस् ( श्लिषु ) आलिंगन करना, चिपकना । लिस्स ( देखो लिस् ) ( श्लिष् ) लिस्संति ।
पाइअ०
इसमें लेस्सा पारिभाषिक शब्द के मूल धातु का संकेत नहीं है। श्लिष भाव लिया जाय तो लिस' धातु से लिसा तथा ल की इ का विकार से ए युवर्णस्य गुणः ( हेम० ८।४।२३७ ) लेसा शब्द बनता है तथा अधो म-न-याम् ( हेम० ८।२।७८) इस सूत्र से य का लुक तथा स का द्वित्व, बहुलम् ( हेम० ८११२ )--स का वैकल्पिक द्वित्व-लेस्सा। इस प्रकार लेसा तथा लेस्सा दोनों रूप बनते हैं। टीकाकारों ने "लिश्यते---श्लिष्यते कर्मणा सह आत्मा अनयेति लेश्या" ऐसा अर्थ ग्रहण किया है। अतः लिस्स को ही लेस्सा' का मूल धातु रूप मानना चाहिये ।
यदि संस्कृत शब्द लेश्या का प्राकृत रूप ग्लेस्सा' बना ऐसा माना जाय तो लेश्या शब्द के 'श' का दंती 'स' में विकार, य का लोप तथा स का द्वित्व ; इस प्रकार 'लेस्सा' शब्द बन सकता है, यथा-वेश्या से वेस्सा।
यदि लेश्या का पारिभाषिक अर्थ से भिन्न अर्थ तेज, ज्योति, आदि लिया जाय तो 'लस' धातु से लेस्सा शब्द की व्युत्पत्ति उपयुक्त होगी। 'लस' का पाइअ० में चमकना अर्थ भी दिया गया है अतः तेज, ज्योति अर्थ वाला लेस्सा शब्द इससे ( लस धातु से ) व्युत्पन्न किया जा सकता है।
•०१२ पाली में लेश्या शब्द
पाली कोषों में लेसा या लेस्सा शब्द नहीं मिलता है । लेस शब्द मिलता है ।
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