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नारकी जीवों के छः संहनन में से कोई संहनन नहीं है। अन्य ( मजबूत ) पुद्गल स्कंध की तरह उन शरीर को बांध रखा है। जो पुद्गल अनिष्ट और अमनोज्ञ होते हैं उनके वे पुद्गल आहार रूप में परिणत होते हैं। वे अनंतप्रदेशी स्कंध पुद्गल है। कृष्णवर्ण के पुद्गलों का आहार करते हैं ।
तंदुलमत्स्य-जलचर तिथंच पंचेन्द्रिय का एक भेद है। अनंत जीवों के साधारण शरीर को निगोद कहते हैं। एक आकाश प्रदेश में अनंत जीवों के असंख्यात-असंख्यात आत्मप्रदेश होते हैं परन्तु एक आकाश प्रदेश पर एक जीव के समूचे प्रदेश नहीं है। एक जीव आकाश के असंख्यात प्रदेश को अवगाहित कर रहता है। निगोद की अवगाहना एक समान होती है ।२
प्रज्ञापना में काय स्थिति का विवेचन सांव्यावाहारिक राशि की अपेक्षा है । 3 असंख्यात निगोद का एक गोला होता है। सूक्ष्म निगोद के समूह से उत्पन्नगोले होते हैं तथा बादर निगोद अवगाहित की अपेक्षा गोले होते हैं । निगोद के गोले असंख्यात है-एक-एक गोले में असंख्यात निगोद है व एक निगोद में अनंत जीव है। निगोद अर्थात् शरीर ( औदारिक शरीर )। एक समान अवगाहना वाली असंख्याती निगोद का एक गोला बनता है अर्थात् एक सरखी अवगाहना वाली असंख्याती निगोद के समूह को गोला कहा जाता है। वे प्रत्येक जीव की, निगोद की व गोले की अवगाहना एक समान कही है।४
शुभयोग से पुण्य तथा निर्जरा दोनों होते हैं। इन दोनों में पूर्व पुण्य का बंध होता है, फिर निर्जरा होती है। आवश्यक वृत्ति में कहा है कि अभव्य जीव अनेक वार अकाम निर्जरा करता हुआ ग्रन्थी देश तक आ जाता है अर्थात् यथाप्रवृत्तिकरण को प्राप्त कर लेता है ।
शरीर, मन और भाव तीनों को रंग प्रभावित करते हैं । मनुष्यों पर बाहरी पदार्थों का जो प्रभाव होता है, उससे सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला है रंग। हम नमस्कार महामंत्र के जप के साथ रंगों का प्रयोग करें। इससे लेश्या और रंग का संतुलन सधेगा। शारीरिक, मानसिक और भावात्मक संतुलन सधेगा। यदि व्यक्ति अपने मन को स्वस्थ, शान्त एवं संतुलित रखना १. जीवाभिगम संग्रहणी २. निगोद षट् त्रिंशिका गा १६ ३. प्रज्ञापना पद १८ ४. प्रकरण रत्नावली पृ० ४३, ४४
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