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जम्बू स्वामी ने ५२७ व्यक्तियों के साथ दीक्षा ग्रहण की जिसमें ११ साधुओं ने प्रशस्त लेश्यादिसे केवल ज्ञान प्राप्त किया ।
कुण्डरीक और पुण्डरीक दो भाई थे । कुण्डरीक ने दीक्षा ली । एक हजार वर्ष करीब संयम का पालन किया । सरस आहार का लपेटी बना | वापस गृहस्थाश्रम स्वीकार किया - सात दिन सरस आहार का सेवन कर महाकृष्ण लेश्या में काल कर सातवीं नरक में उत्पन्न हुआ । उस समय उनके अप्रशस्त लेश्या, अप्रशस्त अध्यवसाय तथा अशुभ परिणाम थे ।
जैन विश्वभारती-लाड से प्रकाशित आगम में दो भिन्न भिन्न पाठ देखने में आये हैं । नीचे फूडनोट नम्बर नहीं है । संशोधन की दृष्टि से यह पाठ नीचे दिया जा रहा है ।
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१- पुरिससीहे णं वासुदेवे दस वाससयसहस्साई सब्बाउयं पालइत्ता छट्ठीए तमाए पुढवीए णेरइयत्ताए उबवण्णे ।
- ठाण० स्था १० | सु ७८
२ - पुरिससी हे णं वासुदेवे दस बाससयसहस्साइ सव्वाउयं पालहत्ता पंचमाए पुढवीए नरएम नेरइयत्ताए उववण्णे ।
- सम० पइण्णगसयाओ । सू ८५
डॉ० प्रो० राजाराम जैन ने मिथ्यात्वी के आध्यात्मिक विकास की चर्चा इस प्रकार की है
मैंने प्रारम्भ में उपन्यास समझ कर आद्योपान्त पुस्तक पढ़ी। बहुत आह्लाद हुआ । अपूर्व ग्रन्थ है । लेख को धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ ।
उपसंहार
यद्यपि लेश्या के द्रव्य कषाय को उद्दीप्त करते हैं तथा कषाय के साथ लेश्या का एकात्मक नहीं है । अर्थात् लेश्या कषाय का गुण या लक्षण नहीं है । कषाय से भिन्न पदार्थ है । लेश्या कर्मों का निष्यंद नहीं है क्योंकि ऐसा होने से अयोगी केवली भी सलेशी कहे जायेंगे । लेश्या कर्म की स्थिति को हेतु कही गयी है—ऐसा कोई नहीं मानता है । कर्म की स्थिति की हेतु तो कषाय को ही बताया गया है । लेश्या कषाय की उत्तेजक या सहायक है अत: अनुभाग बंध की उपचार से हेतु कही गयी है ।
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