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४-तेजो लेश्या-तब चतुर्थ ग्राम-धातक ने कहा कि शस्त्रयुक्त पुरुष को ही मारना चाहिए, निःशस्त्र को मारने का क्या प्रयोजन है। इस प्रकार तेजोलेश्या का परिणाम जानना चाहिए।
५-पालेश्या-पांचवें ग्राम-घातक ने कहा कि शस्त्र वाला भी जो युद्ध करता है उसको मारना चाहिए दूसरे निरपराधी को मारने से क्या लाभ ? इस प्रकार का परिणाम पद्मलेश्या का समझना चाहिए ।
६-शुक्ल लेश्या-छ? पुरष ने कहा कि अरे ! यह तो योग्यजनक नहीं है क्योंकि प्रथम तो हम चोरी करते हैं फिर बिचारे लोगों को मारना । अतः धन से ही चोरी करना है फिर मनुष्य के प्राणों को क्यों हरण किया जाय । इस प्रकार का परिणाम शुक्ललेश्या का होता है। जैन तत्त्व प्रवेश में आचार्य मिथु ने कहा
फोरबी लब्धि अनुकम्पा आणी, गोशाला ने वीर बचायो। छः लेश्या छद्मस्थज हुता, मोह कर्म वश रागज आयो॥
-अनुकम्पा ढाल १ । गा ८ । पृ० २ अर्थात् गोशाला के प्रति अनुकम्पा आने से भगवान महावीर ने शीतल तेजो लब्धि ( लेश्या ) का प्रयोग किया। क्योंकि उस समय भगवान छमस्थ थे-छः लेश्या थी। अस्तु मोह के कारण यह सावध कार्य किया ।'
एक आचार्य के शिष्य को कुल, दो आचार्य के शिष्य को गण, अनेक आचार्य के शिष्य को संघ कहा, साधार्मिक सर्वसाधु जानना चाहिए।
छों लेश्याओं में से किसी भी लेश्या को आये हुए केवल एक समय हुआ हो तो उस समय कोई भी जीव मृत्यु को प्राप्त नहीं होता। मृत्यु के समय पर आगामी जन्म के लिए जब इस आत्मा का लेश्याओं में परिवर्तन होता है उस समय किसी भी लेश्या के प्रथम व अन्तिम समय में किसी भी जीव की उत्पत्ति नहीं होती। १. 'भगवान शीतल तेजू लब्धि करी गोशाले ने बचायो तिहा अणुकम्पणहाए' पाठ करो।
-भ्रमविध्वंसन की हुंडी अधि० ३ । ४४
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