________________
( 90 ) ४८ तिर्यञ्च के
४-सूक्ष्म-बादर पृथ्वीकाय के पर्याप्त-अपर्याप्त । ४-सूक्ष्म-बादर अपकाय के पर्याप्त-अपर्याप्त । ४-सूक्ष्म-बादर अग्निकाय के पर्याप्त-अपर्याप्त । ४-सूक्ष्म-बादर वायुकाय के पर्याप्त-अपर्याप्त । ६-सूक्ष्म-बादर-प्रत्येक साधारण के पर्याप्त-अपर्याप्त । ६-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय के पर्याप्त-अपर्याप्त ।
२०-जलचर, स्थलचर, उरपर, भुजपर, खेचर-ये पांच प्रकार के तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय के संज्ञी-असंही दो-दो भेद है-उनके पर्याप्त-अपर्याप्त ।
३०३-मनुष्य के २०२ संज्ञी मनुष्य-१५ कर्मभुमिज, ३० अकर्मभुमिज तथा ५६ अंतर्वीपज
ये १०१ के पर्याप्त-अपर्याप्त ।
१०१ असंज्ञीमनुष्य जो संज्ञीमनुष्य के मल-मूत्रादि १४ चौदह स्थानक में उत्पन्न
होते हैं अपर्याप्त अवस्था में ही मरते हैं। पर्याप्त अवस्था नहीं आती है।
१९८-देवों के .. १-१० भवनपति, १५ परमाधामी, १६ वाणव्यन्तर,
१० तिर्यक् ज़म्भक, १० ज्योतिषी, ३ किल्बिधी, ६ लौकान्तिक, १२ सौधर्मादि देव तथा ६ वेयक,
५ अनुतरोपातिक देव । मोट-५६३ भेद
कृष्णलेशी जीव कृष्णलेशी में उत्पन्न हो तो
आगति ३१६-१५ कर्मभुभिज
मनुष्य के पर्याप्त-अपर्याप्त ४८ तिर्यञ्च के १०१ असंज्ञी मनुष्य एवं १७६ लड़ी का,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org