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बासठिया के थोड़े में लेश्या सम्बन्धित विवेचन भी है | १०२ बोल है । लेश्या का विवेचन इस प्रकार मिलता है ।
जीव के भेद
१४
सलेशी में कृष्णलेशी में १४
नोललेशी में
१४
कापोतलेशी में १४
तेजुलेशी में पद्मलेशी में
शुक्ललेशी में अलेशी में
गुणस्थान योग
१३ प्रथम १५
६ प्रथम १५
६ प्रथम १५
६ प्रथम १५
३ (३,१३,१४वां) ७ प्रथम १५
२ (१३,१४वां) ७ प्रथम १५
२ (१३,१४वां) १३ प्रथम १५ १ (चौदहवां) १ चौदहवां नहीं
उपयोग
भाव
१२
५
१० केवलज्ञान ५ केवलदर्शन बाद
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इकवीस द्वार के
37
५
५
५
५
५
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आत्मा
IS IS
लेश्या और जीव भेदों की अपेक्षा गति- आगति
गति का अर्थ है - जाना तथा आगति का अर्थ किस गति से आया है ।
८
८
15 15 5 15 15
८
८
33
१२
२ केवलज्ञान
३.
केवलदर्शन ( उदय,
क्षायिक
कषाय
तथा पारिणामिक ) बाद
८
सलेशी, कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी में लब्धि ५, वीर्य ३ ( पंडित, बालपंडित, बाल ), दृष्टि ३, भवि अभवि दोनों है, कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक दोनों है । दंडक --- सलेशी में २४, कृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी में २२ दंडक ( ज्योतिषी वैमानिक बाद), तेजुलेशी में दंडक १८ (तीन विकलेन्द्रिय नारकी, अग्निकाय - वायुकाय वाद ) तथा पद्मलेशी व शुक्ललेशी में ३ दंडक २०व, २१वां, २४वां, तिथंच पंचेन्द्रिय, तियंच मनुष्य तथा वैमानिक देव ।
श्री मज्जाचार्य ने भ्रमविध्वंसनम् के लेश्याधिकार में छद्मस्थ तीर्थङ्कर में कषाय कुशील नियण्ठा कहा है तथा कषाय कुशील नियंठा ( निम्नन्थ ) में छ: लेश्या कही है । आवश्यक सूत्र अध्ययन ४ में छः लेश्या के लक्षणों का भी विवेचन है ।
योग
जीव के ५६३ भेदों की तालिका इस प्रकार है- - १४ भेद - सात नारकी के पर्याप्त अपर्याप्त |
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