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की शुद्धि हो । जब लेश्या का रूपान्तरण होता है, तपस्या के द्वारा, ध्यान के द्वारा, चैतन्य केन्द्रों को जागृत करने के द्वारा या चैतन्य केन्द्रों को निर्मल बनाने के द्वारा, तब आन्तरिक शक्तियां जागती है और वे रसायनों को बदलती है और आवरणों को दूर करती है जो ज्ञान को आवृत्त किये हुए हैं । उसकी घनीभूत मूर्च्छा को तोड़ती है जो आनन्द को विकृत बनाये हुए हैं ।"
तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या – ये तीन लेश्याएं गर्म और चिकनी है । जब इनके स्पंदन जागते हैं तब व्यक्ति के भाव निर्मल बनते हैं । अभय, मैत्री, शांति, जितेन्द्रियता, क्षमा आदि पवित्र भावों का निर्माण होता है । जब भाव पवित्र होते हैं, निर्मल होते हैं तब विचार भी निर्मल होते हैं x x x जिस लेश्या का भाव होता है, वैसा ही विचार बन जाता है । तंत्र है और विचार कर्म तंत्र है | २
भाव अंतरंग
अस्तु औदारिक, औदारिकमिश्र आदि की अपेक्षा लेश्या के सात भेद हैं । या कृष्णादि छः तथा संयोगज सात भेद होते हैं । अजीव नोकर्म द्रव्यलेश्या के दस भेद हैं- - यथा -- चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र तथा तारा लेश्या, आभरण, छाया, दर्पण, मणि तथा कांकणी लेश्या 13
ग्राम घातक का दृष्टान्त
१ - कृष्णलेश्या - किसी ग्राम में धन- अनाज आदि में आसक्त होकर ऐसे छः चोरों के स्वामी एकत्रित हुए। उनमें से प्रथम ग्रामघातक ने कहा कि दो पैर वाले अथवा चार पैर वाले प्राणी, पुरुष, स्त्री, बालक, घर के आदि जो दिखाई दे उन सबको मार गिराओ । इस प्रकार कृष्ण लेश्या का परिणाम समझना चाहिए ।
२ - नीललेश्या - तब दूसरे पुरुष ने कहा कि मनुष्यों को ही मारना चाहिए, पशुओं को मारने से क्या लाभ है ? इस प्रकार का परिणाम नील लेश्या का होता है ।
३ -- कापोत लेश्या – तीसरे ग्रामघातक ने कहा कि पुरुषों को मारना चाहिए, स्त्रियों को मारने से क्या लाभ ? इस प्रकार का कापोत लेश्या का परिणाम होता है ।
१: आभामंडल लेश्या । एक विधि है— रसायन परिवर्तन पृ० १६७ २. आभामंडल - लेश्या । एक विधि है - चिकित्सा की पृ० १५३ ३. लेश्या कोश पृ० ७५
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