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( 83 ) उत्तराध्ययन के टीकाकार शान्तिसूरि ने कहा है
कर्मद्रव्यलेश्या इति सामान्यऽभिधानेऽपि शरीरनामकर्मद्रव्याण्येव कर्मद्रव्यलेश्या। कार्मणशरीरवत् पृथगेवकर्माष्टकात् कर्मवर्गणा निष्पन्नानि कर्मलेश्या द्रव्यानीति तत्त्वं पुनः ।
-उत्त० अ ३४ । टीका । पृ० ६५० अर्थात् द्रव्यलेश्या कर्मवर्गणा से बनती है। यह कर्म रूप है परन्तु आठ कर्मों से भिन्न यदि कर्म वर्गणा निष्पन्न न मानी जाय तो यह कर्मस्थिति का विधायक नहीं बन सकती। कमलेश्या का सीधा सम्बन्ध शरीर नामकर्म से है। क्योंकि यह शरीर नामकर्म की परिणति है ।
चार्ट नं० ३-लेश्या-दलगत भाव से प्रथम तीन लेश्या
पीछे की तीन लेश्या विशेषण अधर्म लेश्या
धर्म लेश्या अप्रशस्त लेश्या
प्रशस्त लेश्या संक्लिष्ट लेश्या
असं क्लिष्ट लेश्या अविशुद्ध लेश्या
विशुद्ध लेश्या दुर्ग तिगामी
सुगतिगामी कर्म लेश्या
कर्म लेश्या शीत-रूक्ष
स्निग्ध-उष्ण गन्ध
दुर्गन्ध
चार्ट नं०४-कृष्ण लेश्या नाम
कृष्ण काला
कटु गन्ध
दुर्गन्ध
शीत-रूक्ष स्थिति
जधन्य-अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम
अन्तमुहूर्त अधिक चार्ट नं०५-नील लेश्या
नील वर्ण
नीला
स्पर्श
सुगन्ध
वज
स्पर्श
नाम
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