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® अरिहन्त 8
(१६) द्वारिका नगरी को दग्ध करने वाले द्वीपायन ऋषि का जीव देवलोक से आकर उन्नीसवाँ तीर्थङ्कर श्री यशोधर होगा।
(२०) कर्ण का जीव देवलोंक से आकर बीसवाँ तीर्थङ्कर श्री विजयजी होगा।
(२१) निर्ग्रन्थपुत्र' ( मल्लनारद ) का जीव देवलोक से आकर २१वाँ तीर्थङ्कर श्री मल्यदेव होगा।
(२२) अम्बड़ श्रावक का जीव देवलोक से आकर बाईसवाँ तीर्थङ्कर श्री देवचन्द्र होगा।
(२३) अमर का जीव देवलोक से आकर तेईसवाँ तीर्थङ्कर श्री अनन्तवीर्य होगा।
(२४) शनकजी का जीव सर्वार्थसिद्ध विमान से आकर चौवीसवाँ तीर्थङ्कर श्रीभद्रंकर होगा।*
१-इन कर्ण को कोई कौरवों का साथी मानते हैं और कोई-कोई चम्पापुरपति वासुपूज्यजी के परिवार का कहते हैं । तत्त्वं केवलिगम्यम् ।
२-कोई-कोई इन्हें रावण का नारद मानते हैं।
३-यह उववाईसूत्र में वर्णित श्रावक नहीं हैं, किन्तु जिन्होंने सुलसा श्राविका की परीक्षा की है, वे हैं।
___ * उक्त चौवीस तीर्थङ्करों का अन्तर मिलाने पर कइयों का मिलान नहीं खाता । जान पड़ता है, इसमें से किसी ने तीर्थङ्कर गोत्र उपार्जन कर लिया है और कोई-कोई आगे के भवों में करेंगे फिर भी उनका नाम प्रगट कर दिया गया है, जैसे महावीर स्वामी का नाम २७ प्रधान भव पहले ही मरीचि के भव में ही श्री ऋषभदेव ने प्रकट कर दिया था। तत्वं केवलिंगम्यम् ।