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# জল-বস্তু সন্ধায় ৪
(8) सुनन्द श्रावक का जीव देवलोक से आकर नौवाँ तीर्थङ्कर श्री पोटिल्ल' होगा।
(१०) पोक्खली श्रावक के धर्मभाई शतक श्रावक का जीव देवलोक से आकर दसवाँ तीर्थङ्कर श्री शतक होगा।
(११) कृष्णजी की माता देवकी रानी का जीव नरक से आकर ग्यारहवाँ तीर्थङ्कर श्री मुनिव्रत होगा।
(१२) श्रीकृष्णजी का जीव तीसरे नरक से आकर बारहवाँ तीर्थङ्कर श्री अमम नामक होगा।
(१३) सुज्येष्ठजी का पुत्र, सत्यकी रुद्र का जीव नरक से आकर तेरहवाँ तीर्थङ्कर श्रीनिष्कषाय के रूप में उत्पन्न होगा।
(१४) कृष्णजी के भ्राता बलभद्र का जीव पाँचवें देवलोक से आकर चौदहवाँ तीर्थङ्कर श्री निष्पुलाक होगा ।
(१५) राजगृह के धन्ना सार्थवाह की बांधवपत्नी सुलसा श्राविका का जीव देवलोक से आकर पन्द्रहवाँ तीर्थङ्कर श्री निर्मम के नाम से उत्पन्न होगा।
(१६) बलभद्रजी की माता रोहिणी का जीव देवलोक से आकर सोलहवाँ तीर्थङ्कर श्री चित्रगुप्त होगा।
(१७) कोल-पाक वहराने वाली रेवती गाथापत्नी का जीव. देवलोक से आकर सत्तरहवाँ तीर्थङ्कर श्री समाधिनाथ होगा।
(१८) शततिलक श्रावक का जीव देवलोक से आकर अठारहवाँ तीर्थङ्कर श्री संवरनाथ होगा। ज्ञानी और तीर्थङ्कर--- इन छह पदवियों के धारक होंगे। ५-६-यह भी, छह पदवियों के धारक होंगे। ७-कितनेक कहते हैं कि यह तेरहवें तीर्थङ्कर होंगे, किन्तु तेरहवें तीर्थङ्कर का अन्तर ४६ सागरोपम का होता है, इस कारण यह मेल नहीं खाता। हाँ, पश्चादनुपूर्वी से १३वे हो सकते हैं।
८-कोई-कोई गांगुली तापस को भी शततिलक कहते हैं । तत्त्वं केवलिगम्यम् ।