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हिन्दूलॉ के स्कूलोंका वर्णन
[प्रथम प्रकरण
(क ) दायभाग -( देखो दफा ६ ) यह ग्रन्थ बङ्गालमें सर्वमान्य है।
यह सारा ग्रन्थ मानों मिताक्षराके सिद्धान्तोंपर आक्रमण करनेके लिये लिखा गया था। इसका अनुवाद मिस्टर कोलबुकने अङ्गरेजीमें किया है। बङ्गालमें जब दायभाग और किली दूसरे ग्रन्थमें मतभेद हो तो दायभाग ही माना जायगा। दायभागकी सब बातें मानलेना लाज़िमी नहीं हैं उसके वचनोंमें इस बातका ध्यान रखना चाहिये कि जो कुछ कि वह कहता है वह धर्म शास्त्रका ठीक अर्थ है या नहीं और रवाजसे भी माना हुआ है या नहीं। इसके सिवाय इस वातका भी ध्यान रखना चाहिय कि उसका कोई श्लोक जाली या पीछेसे जोड़ा हुआ तो नहीं है 8 C. L. J. 369. दायभागके अध्याय ४ के तृतीय परिच्छेदमें ३२, ३३ का वचन और ३१ श्लोकमें 'स्वस्त्रीय' शब्द पीछेसे जोड़ा गया है
तथा जाली है देखो-8 C. L. J. 369 बचन यह है
" न तु सुतपदमोरसविशेषणं वैयर्थ्यात् सपत्नीपुत्र. सद्भावेऽपि स्वस्त्रीयाद्यधिकारापत्तेश्व ४-३-३२" "औरस पुत्र कन्ययोः सपत्नीपुत्रस्यचाभावदौहित्रस्याधिकारिता ४
३-३३”
(ख ) दायतत्व-इसे रघुनन्दनने लिखा था इसका अनुवाद अगरेज़ीमें
बाबू गुलाबचन्द्र सरकारने किया है। (ग) दायकर्मसंग्रह--इसके कर्ता थे श्रीकृष्णतर्कालंकार । इसका
अगरेज़ी भाषांतर मिस्टर विंचने किया है इसमें दायभागके अनु
सार उत्तराधिकारके विषयका वर्णन है। (घ) दायभागका टीका श्रीकृष्णकृत् ।।
(ङ) रघुमणिकृत दत्तकचन्द्रिका-इसे कोई देवानन्दकृत भी कहते हैं (६) बरार और नागपुर--(क) मिताक्षरा--बम्बई स्कूलमें जो मिताक्षराका अर्थ किया जाता है वही बरारमें किया जाता है (देखो बम्बई स्कूल ); नागपुरमें रहनेवाले महाराष्ट्र ब्राह्मणों के मामलेमें पश्चिम भारतके हिन्दुला का स्कूल जो मिताक्षरामें कहा गया है मान्य है। ( ख ) व्यवहार मयूख और वीरमित्रोदय- इस प्रांतमें दूसरे दरजेपर
माने जाते हैं । वे वहीं तक माने जाते हैं जहांतक उनका मिताक्षरासे मतभेद नहीं है। व्यवहारमयूख, वीरमित्रोदयसे ऊपर मानाजाता है।