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दीपिका-नियुक्ति टीका म.६ स. जी. कर्म. समानव विशेषाधिकोवेति २ योग५माणातिपात ६ मृपावादा ७ ऽदत्तादान ८ मैथुन ९ परिग्रह १० श्रोत्रा घोण रसन स्पर्शनरूप पश्चन्द्रिय १५ मनोवाकाया ऽशुमल्यापाराणि १८ माण्डोष. करणानामयतनया निक्षेपणं ग्रहणं च १९ सूचीकुशाग्रमावस्याऽप्ययतनया निक्षेपर्ण पाहणं चेति सामान्यतया विंशतिर्भदा भवन्ति । तथा पूर्वोक्तेषु द्विचत्वारिंशदायर मेदेषु पञ्चदशयोगानां संमेलनेन सप्त पश्चाशदप्यास्रवाः भवन्तीति बृद्विवेकः ।। .. मूलम्-तिव्व मंदादि भाव विरियाहिगरणविसेसेहितों
आसवविसेसो ॥६॥ . या-'तीव्र-मन्दादि भाववीर्याऽधिकरण विशेषेभ्यः पावविशेष:।।
तत्वार्थदीपिका-अथ-कर्मबन्ध हेतुभूताऽवं प्रति कायादि योगत्रयादेः कारण योग (६) प्राणातिपात (७) मृषावाद (८) अदत्सादान (९) मैथुन (१०) परिग्रह (११) श्रोत्रेन्द्रिय (१२) चक्षुहन्द्रिय (१३) घाणेन्द्रिय (१४) रसनेन्द्रिय (१५) स्पर्शनेन्द्रिय (१६) मनोयोग (१७) वचनयोग (१८) काययोग (१९) भाण्डोपकरण का अयतना से निक्षेपण या ग्रहण करना और (२०) सूची-कुशाग्रका भी अयतना से निक्षेपण ग्रहण, यह बीस प्रकार का आस्रव कहा गया है। तथा पहले कहे गये आस्रव के बयालीस भेदों में पन्द्रह प्रकार के योगों को मिलाने से मात्रघ के सत्तावन भेद भी होते हैं। यह आस्रव संबन्धी विस्तार समझना चाहिए ।।५।।
तिव्व मंदादिभाव' इत्यादि।
सूत्रार्थ-तीव्रभाव, मंदभाव आदि वीर्य और अधिकरण की विशेषता के कारण आस्रव में भी विशेषता हो जाती है ॥६॥
तस्वार्थदीपिका-काययोग आदि आस्रव के कारण सभी जीवों में यो (E) प्रातिपात (७) भूषापा (८) महत्ताान () भैथुन (१०) परिश (११) श्रीन्द्रिय (१२) क्षुधन्द्रिय (13) घान्द्रय (१४) २सनेन्द्रिय (१५)
शन्द्रिय (१६) मनाया (१७) क्यनयोग (१८) ४ाययोग (16) एडी, પકરણનું અયત્નાથી નિક્ષેપણુ અથવા ગ્રહણ કરવું અને (૨૦) સૂચીકુશાશનું પણ અયતનાથી નિક્ષેપણુ-ગ્રહણ, આ વીસ પ્રકારના આસવ કહેવામાં આવ્યા છે. તથા અગાઉ કહેવામાં આવેલા આસ્ટિવના બેંતાલીસ ભેદમાં પંદર પ્રકારના
ગેને ઉમેરવાથી આસવના સત્તાવન ભેદ પણ થાય છે. આ આસ્રવ સંબંધી વિસ્તાર સમજ જોઈએ. યા
'तिव्व मंदादिभाव' त्याल સૂવાથં–તીવ્રભાવ, મંદભાવ, વીર્ય અને અધિકરણની વિશેષતાના
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