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६ जाम ८ से तंव
धम्म
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चिसो ६ पोषकम्प विस्सगे ७ अंतराव से तं भावविसग्गे इति as sisai shagraः १ कर्मभ्युत्सर्गोऽष्टविधः प्रमः, तद्यथा - ज्ञानावरणीय धर्मपुत्सर्गः - दर्शनावरणीय कर्मभ्युत्सर्गः वेदनीय कर्मभ्युत्सर्गः मोहनीय कर्मम्यु रसर्गः - आयुष्पकर्म व्युत्यर्ग:- नामकर्मन्युत्सर्गः गोत्रकर्मव्युत्सर्गः अन्तरायकर्म व्युत्सर्गः इति । एवञ्चद् द्विविधमपि बाह्याभ्यन्तरश्च प्रत्येकं पविधत्वेन द्वादश प्रकारकं निरोधहेतुत्वात् संवत्करणं भवति पूर्ववार्जित कर्मपुखरजोविधूनननिमित्तत्वाच्च निर्जरा हेतु भवतीति भावः । एवञ्च ज्ञानावरणदर्शनावरणोः सयाद अनन्तज्ञान- दर्शने भवतः वेदनीयकर्मपाद् इन्द्रियजनित् प्रश्न-फर्म लगे के कितने भेद है ?
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उत्तर- फर्मageसर्ग के आठ भेद हैं, यथा - (१) ज्ञानावरणीय कर्म सर्ग (२) दर्शनाणी कर्म उपसर्ग (३) वेदनीय कर्म व्युत्सर्ग (४) मोहनीय कर्म (५) आयुकर्मन्युलर्ग (६) नामकर्मवत्सर्ग (७) गोत्रकर्म व्युत्सर्ग और (८) अन्तराय कर्म व्युत्सर्ग।
इस प्रकार छह बाह्य और छह आभ्यन्तर तप मिलकर बारह होते, हैं । यह बारह कर्मो का तप नवीन कर्मों के आय के निरोध का कारण होने से तंवर का हेतु है और पूर्वसंचित कर्मों के क्षण का कारण होने से निर्जरा का भी हेतु होता है । जब पूर्वोपर्जित कर्मों का क्षत्र और नूतन कर्मों के आस्रव का निरोध हो जाता है तो आत्मा की स्व भाविक शक्तियं अभिव्यक्त से उठती है। ज्ञानावरण के क्षय से अन न्त ज्ञान और दर्शनावरण के क्षय से अनन्त दर्शन की प्राप्ती होती है। પ્ર—કન્યુલ્સગČના કેટલાં ભેદ છે ?
उत्तर- ४र्भव्युत्सर्गना माह ले छे, भेडे - ( १ ) ज्ञानावरणीय व्यु त्सर्ग (२) दृशनावरणीय भव्युत्सम ( 3 ) देहनीयम व्युत्सर्ग (४) भाडनीय हम व्युत्स (५) माथुम्भ व्युत्स" ( () नामम्भ०यु-स (७) गर्भ व्युत्सर्ग (८) मन्तरायभव्युत्सर्ग,
नामम्र्मव्यु-सर्ग
આ રીતે છ ખાદ્ય અને છ આભ્યન્તર તપ મળીને ખાર થાય છે ખાર પ્રકારના તપ નવીન કાંતા સત્રના નિરાધના કારણ હાવાથી સ`વરના હેતુ છે અને પૂચિત કર્મોના ક્ષયના કારગ હાવાથી નિશના પણ્ હતુ
થઈ જાય છે ત્યારે આત્માની સ્વાભાવિક શક્તિએ અભિવ્યકત થઈ જાય છે. છે. જ્યારે પૂર્વાપતિ કર્મોના ક્ષત્ર અને નૂતન કર્મોના આસવના નિરાધ જ્ઞાનાવરણુના ક્ષયથી અનન્તજ્ઞાન અને દશનાવરણુના ક્ષયથી અનનર્દેશનની
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