Book Title: Tattvartha Sutra Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 822
________________ હર્ષદ तस्वार्थ सूत्रे वाऽऽश्रित्य जायमानं यानं तं विहाय द्रव्यमुपैति । अथ वाचक शब्दव्यञ्जन संक्रान्तिर्यथा - एकं श्रुतशब्दमालम्ब्य जायमानं शब्दान्तर मालम्बते, तदपि परित्यज्य शब्दान्तरमुपादत्ते, योग संक्रान्तिर्यथा - काययोगोपयुक्तध्यानं वाग्योग संक्रामति, वाग्योगोपयुक्तध्यानञ्च - मनोयोगं संक्रामति, मनोयोगोपयुक्तध्यानञ्चकाययोगं संक्रामति, इत्येवं खलु- अर्थव्यञ्जनयोगसंक्रमणं विचार उच्यते इति भावः । उक्तश्च -- 'उपपाठिह भंगाई' पज्जायाण जमेगदव्वंमि । नाणानचाणुसरणं पुण्वगयसुयाणुसारेणं ॥ १ ॥ 'विचार मत्थ वंजणजोगंतरओ तयं पदम सुक्कं । होह पुहुत्त विधक सविचार सरागभावस्स' ॥२॥ 'जं पुण निष्पक'प' नियायसरण पदवमिवचितं । उपायठ भंगाहयाण मे गम्मि पज्जाए || ३ || अविचारमत्थवंजणजोगंतरओ तयं विद्य सुक्क । पुव्वगय सुयालंबण मेगन्त्त वियक्कमवियारं ||४|| होने वाला ध्यान उस द्रव्य को छोडकर पर्याय में चला जाता पर्याय का चिन्तन करते-करते द्रव्य का चिन्तन करने लगता है, यह अर्थ का संक्रमण कहलाता है । व्यंजन की संक्रान्ति का मतलब यह है कि श्रुत के किसी एक शब्द का चिन्तन करते-करते दूसरे शब्द का चिन्तन करने लगना । काययोग के अवलम्बन से होने वाला ध्यान कदाचित् वचनयोग का आश्रय लेना है, कदाचित् किसी अन्य योग का यह योग संक्रान्ति है । इस प्रकार अर्थ, व्यंजन और योग का संक्रमण होना विचार कहा गया है। कहा भी है 'पूर्वगत श्रुत के अनुसार, अनेक नयों की अपेक्षा से एक द्रव्प કાઇ એક દ્રવ્યનુ આલમ્બન લઈને થનારૂ પ્રાન તે દ્રવ્યને છેડીને પર્યા યમાં ચાલ્યું જાય છે પર્યાયનુ ચિન્તન કરતા કરતા દ્રવ્યનું ચિન્તન કરવા લાગે છે આ અતું સંક્રમણ કહેવાય છે, વ્યંજનની સ`ક્રાન્તિને! અર્થ એવા થાય છે કે શ્રુતના કોઇ એક શબ્દનું ચિન્તન કરતા કરતા ખીજા શબ્દનુ ચિન્તન કરવા લાગવુ કાયયેાગના અવલમ્બનથી થનારૂ ધ્યાન કદાચિત વચનચેગને! આશ્રય લે છે, કદાચિત કેઇ એન્ય ચેાગના આ વેગસ ક્રાન્તિ છે આ રીતે અથ વ્યંજન અને ચેાગતુ સંક્રમણુ થવુ.-વિચાર કહેવામાં आव्यो छे, पशु - પૂર્વગત શ્રુત અનુસાર, અનેક નચાની અપેક્ષાથી એક દ્રવ્યના ઉત્પાદ

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