Book Title: Tattvartha Sutra Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 843
________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ.८ सू.५ अनशनतपसः द्वैविध्यनिरूपपाम् ५५ मूलम्-तत्थवाहिरए अणसणतवे दुविहे, इत्तरिए-जाव कहिए य ॥५॥ - छाया-तत्र वाह्यम्-अनशनतपो द्विविधम्, ईत्वरिक-यावत्कथिकञ्च ॥५॥ ।' तत्वार्थदीपिका-पूर्व तपसो बाह्याभ्यन्तरभेदेन द्वादशविधस्यापि निर्जराहेतुत्वं प्रतिपादितम्, सम्पति-पविधवाह्य तपसः प्रथमोपात्तस्याऽनशनरूपस्ये द्वैविध्यं प्रतिपादयितुमाह 'तत्थ बाहिरए' इत्यादि । तत्र-पूर्वोक्त पविध वाम तपसि बाह्यम्-बहिर्भवं खल्लु अनशनतपो द्विविधं भवति तद्यथा-इत्वरिकं, यावकथिकञ्च । तत्र अल्पकालिकम् इत्परिकं नामाऽनशन तपः। यावज्जीव पर्यन्त मनशन तपस्तु-यावत्कथिक मुच्यते, खत्र-एति गच्छति तच्छीलम् इत्वरिकम् अल्पकालिक मनशन मुच्यते, गमनशीलत्वात् । यावत्कथिकन्तु-यावद् यदवधिमनुष्योऽयम् इति मुख्य व्यवहाररूपा कथा प्रचलति, तत्र भवं यावत्कथिक जीवन 'तत्थ बाहिरए अणलणत' इत्यादि। सूत्रार्थ-बाह्यतप अनशन के भेद हैं-इत्वरिक और धावत्कथिक।५। तत्त्वार्थदीपिका-घारह प्रकार का तप निर्जरा के हेतु है, यह पहले कहा गया है, अब प्रथम बाह्य तप अनशन के दो भेदों का कथन करते हैं- पूर्वोक्त छह प्रकार के बाह्य तपों में से अनशन के दो भेद हैइत्वरिक और यावत्कथिक। घोडे समय के लिए जो अनशन किया जाता है वह इत्वरिक अनशन कहलाता है और जो अनशन जीवन पर्यन्त तक के लिए किया जाता है, उसे यावत्कधिक कहते हैं । अल्प कालिक -अनशन इत्वरिक है और जब तक 'यह मनुष्य है। ऐसा व्यवहार होता-रहे अर्थात् जो अनशन-जीवन-पर्यन्त रहे वह यावत्क 'तत्थ बाहिरए अणसणतवे' त्यादि । સૂત્રાર્થ – બાહ્ય તપ અનશનના ભેદ ઈ–રિક અને યાત્મથિક છે. પણ તજ્યાથદીપિકા-બાર પ્રકારના તપ નિર્જરાના હેતુ છે, એ પહેલાં કહેવામાં આવ્યું છે, હવે પ્રથમ બાહ્ય તપ: અનશનના બે ભેદનું કથન કરીએ છીએ પૂર્વોક્ત છ પ્રકારના બાહ્ય તપમાંથી અનશનના બે ભેદ છે ઈવરિક અને યાવત્રુથિક, શેડા વખત માટે જે અનશન કરવામાં આવે છે તે ઇત્વરિક અનશન કહેવાય છે અને જે અનશન જીવનપર્યન્ત માટે કરવામાં આવે છે, તેને યાત્મથિક કહે છે. અલ્પકાલીન અનશન ઈત્વરિત છે અને જ્યાં સુધી. આ મનુષ્ય છે? એ વ્યવહાર થતું રહે અર્થાત જે અનશન त०७४

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