Book Title: Tattvartha Sutra Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 845
________________ दीपिका-नियुक्ति टीकामा २.५ अनशनतपसः वैविध्यनिरूपणम् .. भवति । श्रीनाभेयतीर्थङ्करस्याऽऽदिनाथस्य तीर्थे च नमस्कारसहित भक्तादि प्रत्यख्यान कालादारभ्य चतुर्थ भक्तादि क्रमेण संवत्सरपर्यन्त मनशनंतपो भवति, तदन्येषां द्वाविंशति तीर्थकराणां तीर्थेतु नमस्कारसहित भक्तादि प्रत्याख्यानों दारभ्य चतुर्थभक्तादि क्रमेणाऽष्टमासपर्यन्तम् अनशनतपो विहितमागमे यावत्कथिकन्तु-यावद् यदवधिमनुष्योऽयम् इति मुख्य व्यवहाररूपा कथा पचलति तत्र भवं यावस्कथिकम् इति जीवनपर्यन्तमनशन तपो व्यपदिश्यते उक्तञ्चौपपातिकसूत्रे'से किं तं अणसणे ? अणसणे दुविहे पण्णत्ते, त जहा-इत्तरिएय, आवकहिए य' इति । अथ किन्तत् अनशनम् ? अनशनं द्विविधं प्राप्तम्। तद्यथा-इत्वरिकंच, यावत्कथिकञ्च, इति ।५। मूलम्-इत्तरिए अणेगविहे, चउत्थमत्त छटुभत्ताइ भेयओ॥६॥ छाया-'इत्वरिकम्-अनेकविधम्, चतुर्थभक्त-षष्ठभक्तादि भेदतः । ऋषभदेव के शासन में नवकारसी प्रत्याख्यान काल से आरंभ करके चतुर्थभक्त, षष्ठ भक्त आदि के क्रम से एक वर्ष तक का अनशन तेप होता था। मध्य के घाईस तीर्थंकरों के काल में नवकारसी के प्रत्याख्यान से लेकर चतुर्थभक्त आदि के क्रम से आठ मास तक के अनशन-तप का विधान था। जीवन पर्यन्त के लिए जो अनशन किया जाता है, वह यावत्कथिक अनशन कहलाता है। औपपातिक सूत्र में कहा है-अनशन तप कितने प्रकार का है? (उत्तर)-अनशन तप दो प्रकार का कहा गया है, यथा-इत्वरिक और यावत्कथिक ॥५॥ શ્રીનાષભદેવના શાસનમાં નવકારસી વ્યાખ્યાન કાળથી આરંભ કરીને ચતુર્થભકત - ષષ્ઠભકત વિગેરેના ક્રમથી એક વર્ષ સુધીનું અનશન તપ થાય છે. મધ્યના બાવીસ તીર્થકરના સમયમાં નવકારસીના પ્રત્યાખ્યાનથી લઈને ચતુર્થભક્ત આદિને ક્રમથી આઠમાસ સુધીના અનશન તપને ઉલ્લેખ જોવા મળે છે. જીવનપર્યત માટે જે અનશન કરવામાં આવે છે તે યાવસ્કથિક અનશન કહેવાય છે. પપાતિકસૂત્રમાં કહ્યું છે--અનશન તપ કેટલા પ્રકારના છે ?- ઉત્તરઅનશન તપ બે પ્રકારના કહેવામાં આવ્યા છે જેવાકે-ઈવરિક અને सायि: ॥ .

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