Book Title: Tattvartha Sutra Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 825
________________ दीपिका-नियुक्ति टीका ष.७ २.८० व्युत्तर्गतपसोद्वैविध्यनिरूपणम् ५६९ सम्पति-क्रममाप्तस्य पञ्चमारतरतपसो द्रव्य-भान भेदेन द्विविधस्य प्ररूपणे कर्तुमाह-विउमग्गे दुबिहे, दव्यभार भेषओ'-इति । व्युत्सगों विविधस्य कायव्यापारस्य प्रवचन विहितेन विविधोत्सर्ग स्यामः स-द्विविधो भवति, द्रव्यभावभेदतः । तत्र-द्रव्यतो बायोपधे व्युत्सर्ग-स्त्यागो द्रव्ययुन्सर्गः, बाह्योपधि ममत्वत्याग इत्यर्थः। भावतश्चाभ्यन्तरोपधेः क्रोधाविकषायरूपस्य व्यु-सर्गस्त्यागो भावव्युत्सर्गः स च मनोवाकार्यः क्रोधादिपायाणां कृतकारिताऽनुमतिभिश्च भावव्युत्सगों व्यपदिश्यने । उक्तञ्च व्यख्यानमौ श्रे भगवती सूत्रे २५- शतके ७ उद्देशके ८०२ सूत्रे -'विउमरगो दुविहे पणत्ते, त जहा-दवबिउसग्गे य-भाव विउसग्गेय व्युत्तों द्विविधः प्रज्ञप्तः, तबथा-द्रव्यव्युत्सर्गच, भावव्युन्सर्गश्चेति व्युत्प्सर्ग के भेद से आयलर तप के छह भेद कहे गए थे। उनमें से प्रायश्चित्त आदि का भेद प्रदर्शनपूर्वक निरूपण किया गया। अप क्रमप्राप्त पांचवें आभ्यन्तर तप व्युत्सर्ग के दो भेदों की प्ररूपणा करते हैं विविध प्रकार के शायिक व्यापार का आगमोक्त विधिसे त्याग करना व्युत्सर्ग है उसके दो भेद हैं-द्रव्यव्युत्तर्ग और भादव्युन्सर्ग। याह्य उपधि संबंधी ममत्व का त्याग करना द्रव्यव्युन्सर्ग है और आभ्यन्तर उपधि कषाय का त्याग करना भावव्युन्सर्ग है । मन, बचन काय से कृत, कारित और अनुमोदन ले कपायों का त्याग करना भावव्युन्सर्ग कहलाता है। अगवनी सूत्र शलभ २५, उद्देशक ७ में कहा गया है-द्रव्य और भाबके भेद से न्युम्ला, दो पकारका है। इस વ્યસર્ગના દધી અભ્યન્તર તપના છ ભેદ કહેવામાં આવ્યા હતા તેમાંથી પ્રાયશ્ચિત્ત આદિના ભેદ પ્રદર્શન પૂર્વક નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું હવે કમ પ્રાપ્ત પાંચમાં આભ્યન્તર તપ વ્યુત્સર્ગના બે ભેદની પ્રરૂપણા કરીએ છીએ– કવિધ પ્રકારના કાયિક વ્યાપારને આગોકત વિધિથી ત્યાગ કરવો યુત્સર્ગ છે તેના બે ભેદ છે-દ્રવ્યયુગ અને ભાવવ્યુત્સગ બાહ્ય ઉપષિ સંબંધી મમત્વનો ત્યાગ કર દ્રવ્યબુત્સર્ગ છે, અને આભ્યન્તર ઉપધિ કષાયનો ત્યાગ ભાવવ્યુત્સર્ગ છે મન વચન, કાયાથી તથા કૃતકારિત અને અનુમોદનથી કાચને ત્યાગ કર ભાવબુસર્ગ કહેવાય છે, ભગવતી સૂત્ર શતક ૨૫, ઉદ્દેશક માં કહ્યું છે-દ્રવ્ય અને ભાવના ભેદથી વ્યુત્સર્ગ त० ७२

Loading...

Page Navigation
1 ... 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895