Book Title: Tattvartha Sutra Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 828
________________ ५७२ ___ तत्त्वार्थ जलेनाऽनशनादि तपः संयमरूपक्षारद्रव्येण प्रक्षालनद्वारा निर्जरातत्त्वं व्यप दिश्यते, निर्जरणं-देशतः परिगटनं निर्जरेति व्युत्पत्तेः ॥१॥ तत्वार्थनियुक्ति:-पूर्व वाबद् जीवादि संबरपर्यन्तसप्ततत्वानां प्ररूपणं कृतम्, सम्पति-क्रस मातस्याऽयमस्य निर्जरा तत्वस्य प्ररूपणं कर्तुष्टममध्याय मारमते-'देसओ समस्खओ निजा ' इति । देशको न तु-सर्वतः कर्मक्षयः कर्मणां ज्ञानाचरणदर्शनावरणादि कर्मणां विपाशान था देशतः क्षयो-विनाशः परिशटनस् आत्मप्रदेशेभ्यो विघटनं-पृथग्भवनं निर्जरोच्यते । 'निजेरणं परिशटनं निर्जरा'-इति व्युत्पत्तेः, तथा च-पार्जितानां कर्मणाम् आत्म संश्किटानां विपाकेन वेदनरूपकर्मफल मोगेन-तपसा चाऽनशनादिना द्वादशविधेनाऽऽ. सेव्यमानेन देशतः क्षयो विध्वंसनं निर्जरातत्त्वं पदिश्यते । एवञ्चाऽऽरमरूप वस्त्रे जतुकाष्ठवत्-संश्लिष्टस्य ज्ञानावरणादि कर्मरजोमलस्य ज्ञानरूपादि सलिका, ज्ञान रूपी जल से, अनशन आदि तप एवं संघम रूपी खार (सोडे) से प्रक्षालन द्वाश हट जाना निर्जरातत्त्व है ।१! ____ तत्वार्थनियुक्ति--पहले जीव से लेझर संवर पर्यन्त सात तत्वों का निरूपण किया गया अब क्रमानुसार आठवें निर्जरा तत्व का निरू. पण करने के लिए आठवां अध्याय प्रारंभ किया जाता है। विपाक को प्राप्त अथवा नहीं प्राप्त ज्ञानावरण आदि कर्मों का एक देश से क्षय होना--आत्मप्रदेशों से पृथक् हो जाना निर्जरा है। पूर्वोपार्जित और आत्मप्रदेशों के साथ एकमेक हुए कर्म विपाक के द्वारा अर्थात् फल भोग के द्वारा घार प्रचार के अनशन आदि तपों के द्वारा क्षय को प्राप्त हो जाते हैं, उन्ही को निर्जरा कहते हैं। इस प्रकार अस्मा रूपी बस्त्र द्ध और पानी की तरह परस्पर રૂપી જળથી અનશન આદિ તપ અને સંયમ રૂપી ખાર (સેડા) થી પ્રક્ષાલન દ્વારા દૂર કઈ જવું નિર્જરાતત્વ છે. ૫ ૧ | તત્વાર્થનિર્યુકિતઃ–પહેલા જીવથી લઈને સંવર પર્યન્ત સાત તત્વનું નિરૂપણ કરવામાં અાવ્યું, હવે ક્રમાનુસાર આઠમાં નિર્જરાતત્વનું નિરૂપણ કરવા માટે આઠમે અધ્યાય શરૂ કરવામાં આવે છે. વિપાકને પ્રાપ્ત થવા નહીં પ્રાપ્ત જ્ઞાનાવરણ આદિ કર્મોને એકદેશથી ક્ષય થઇ આત્મદેશોથી પૃથક્ થવું નિર્જરા છે પૂર્વોપાર્જીત અને આત્મપ્રદેશની સાથે એકમેક થયેલા કર્મવિપાક દ્વારા અર્થાત ફળભાગ દ્વારા બાર પ્રકારના અનશન આદિ તપ દ્વારા ક્ષયને પ્રાપ્ત થઈ જાય છે, તેને જ નિર્જરા કહે છે. આ રીતે આત્મારૂપી વસ્ત્રમાં, દૂધ અને પાણીની જેમ પરસ્પર બદ્ધ જ્ઞાના

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