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कसाय पाहुडसुत्त
इस प्रकार समुच्चयरूपसे समीक्षण करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि सतकचूर्णि, सित्तरीचूर्णि, कसायपाहुडचूर्णि और कम्मपयडीचूर्णि इन चारों ही चूर्णियोंके रचयिता एक ही आचार्य हैं । यतः कसायपाहुडचूर्णिके रचयिता आ० यतिवृपभ प्रसिद्ध ही हैं और शेप तीन चूर्णियोंके रचयिता वे उपर्युक्त उल्लेखोंसे सिद्ध होते हैं, अतः उक्त चारों चूर्णियोकी रचनाएं आ० - यतिवृपभकी ही कृतियाँ हैं, यह बात असदिग्धरूपसे निर्विवाद सिद्ध हो जाती है । उक्त चारों चूर्णियोके रचे जानेका क्रम इस प्रकार सिद्ध होता है
१. कम्मपयडी चूर्णि — क्योंकि, इसमें किसी अन्य चूर्णिका उल्लेख नहीं है । २. सतकचूर्णि - क्योंकि, इसमें कम्मपयडीसंगहणीका उल्लेख है ।
પૂર
३. कसायपाहुडचूर्णि, क्योंकि सित्तरीचूर्णिमें इसका उल्लेख किया गया है । ४. सित्तरीचूर्ण, क्योकि, सित्तरीचूर्णिका उल्लेख उपर्युक्त तीनो ही चूर्णियोंमे नहीं किया गया है ।
तिलोयपण्णत्तीके अंत में पाई जानेवाली 'चुसिरुवटुकररण' इत्यादि गाथा के उल्लेख से "यह भी सिद्ध है कि तिलोयपण्णत्तीकी रचना के पूर्व कम्मपयडीचूर्णिकी रचना हो चुकी थी । इस प्रकार आज हमे आ० यतिवृपभकी पांच रचनाए उपलब्ध है, इनमे से अभी तक कसा पाहुडचूर्णिके अतिरिक्त शेष सभी रचनाएं मुद्रित होकर प्रकाश मे आ चुकी थीं। हर्प है कि कसा पाहुडचूर्णि सर्व प्रथम उसकी ६० हजार श्लोक- प्रमाण जयधवलाटीका में से उद्धार होकर हिन्दी अनु वादके साथ पाठकोंके सम्मुख उपस्थित है ।
यहां यह बात उल्लेखनीय है कि अभी तक आ० यतिवृपभको उक्त पांच रचनाओ मं से तिलोय पण्णत्ती और कसायपाहुडचूर्णि दि० भंडारों और दि० सस्थाओ से तथा शेप तीन रचनाएं श्वे० भडारों और श्वे० संस्थाओंसे प्रकाशमे आई हैं ।
एक कता कुछ अन्य भी प्रमाण
उपर्युक्त विवेचनसे यह अच्छी तरह सिद्ध हो जाता है कि कम्मपयडी आदि चारो ही ग्रन्थों की चूर्णियों के प्रणेता एक ही आचार्य हैं और वे यतिवृषभ हैं, यह भी उक्त ग्रन्थों के ऊपर दिये गये उद्धरणोंसे भलीभाति सिद्ध है। फिर भी पाठक शका कर सकते है और कह सकते हैं कि एक आचार्य अपनी रचनाके भीतर अन्य आचार्यकी रचनाका उल्लेख भी तो इन्हीं शब्दों में कर सकता है ? अतएव ऐसी शंका करनेवालोंके पूर्ण समाधान के लिए उक्त चूर्णियों में से कुछ ऐसे समान शब्दों, पदों और अर्थवाली वाक्य रचनाओ के यहाँ कुछ अवतरण दिये जाते हैं, जिनसे कि उन सबके एक-कट के होने में कोई भी सन्देह नहीं रह जायगा ।
(१) सर्व-प्रथम तीनो चूणियों के मङ्गलपद्यों पर दृष्टिपात कीजिए । सतकचूर्णिके मङ्गलपद्य इस प्रकार हैं
सिद्धो गिद्धू कम्मो सद्धम्मपायगो तिजगण हो । सन्चजगुञ्जयकरी मोहवयणो जयः वीरो || १ || सव्वेवि गणहरिंदा सव्वजगीसेग लद्धसकारा | सव्वजगमज्झयारे सुयकेवलियो जयंति सया ||२|| जिाहर मुहसंभूया गणहर- विरइयसरीरपविभागा । भवियजय हिदयदइया सुयमयदेवी सया जयः ||३||