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समाज का इतिहास/57
गई है। पंचम, षष्ठ एवं सप्तम खंड में विभिन्न विषयों पर आधारित लेखों का संग्रह है। पूरा अभिवंदन ग्रंथ 850 पृष्ठों से भी अधिक है। अभिवन्दन ग्रंथ का प्रकाशन सन् 1981 में किया गया था। इसका मूल्य 150/- रुपया रखा गया है।
श्री मूलचन्द किशनदास कापडिया अभिनंदन ग्रंथ
कापड़िया जी दिगम्बर जैन समाज के प्राचीनतम पत्र जैन मित्र के वर्षों तक सम्पादक रहे। उनका जन्म 12 फरवरी, 1883 को हुआ। 98 वर्ष की आयु में अक्टूबर 81 में उन्हें अभिनंदन ग्रंथ भेट किया गया। इस अभिनन्दन ग्रंथ के प्रधान संपादक डॉ. शेखरचन्द जैन है। सम्पादक मंडल में पं. परमेष्ठिदास जी शास्त्री, पं. परमेष्ठीदास जी न्यायतीर्थ एवं प. ज्ञानचन्द्र स्वतंत्र रहे। संकलनकर्ता श्री शैलेश डी. कापडिया है। लेकिन यह ग्रंथ अभिनंदन ग्रंथ नहीं बन पड़ा है। इसे हम जैन मित्र का विशेषांक कह सकते हैं। अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन बम्बई दि. जैन प्रान्तीय सभा द्वारा किया गया था।
न्यायाचार्य डॉ. दरबारीलाल कोठिया अभिनंदन ग्रंथ
डॉ. दरबारीलाल जी कोठिया का वर्तमान विद्वत समाज में सर्वोच्च स्थान है। समाज का उनके प्रति सहज आकर्षण है। वे अनेक संस्थाओं के जनक है तथा पचासों विद्यार्थियों के जीवन निर्माता हैं। सन् 1982 में बीना बराहा में भा. दि. जैन विद्वत परिषद् के वृहद अधिवेशन में सैकड़ों विद्वानों के मध्य उन्हें न्यायाचार्य डॉ. दरबारीलाल कोठिया अभिनंदन ग्रंथ समिति की ओर से अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया गया था।
अभिनंदन ग्रंथ का संपादन डॉ. ज्योति प्रसाद जैन, डॉ पन्नालाल साहित्याचार्य, डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, पं. बलभद्र जैन न्यायतीर्थ शास्त्री, डॉ. भागचन्द भागेन्दु एवं डॉ. शीतलचन्द जैन जैसे विद्वानों ने किया है। अभिनंदन ग्रंथ में पाँच खंड है। प्रथम एवं द्वितीय खंड में कोठिया जी के जीवन, संस्मरण, व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया है। उनके ग्रंथो..की समीक्षा भी इसी खंड में की गई है। शेष तीन खंडों में उन्हीं के द्वारा लिखे गये निबंधों का संग्रह है।
पूज्य आर्यिका रत्लमती अभिनंदन ग्रंथ
पूज्य आर्यिका रत्नमती माताजी की महान देन गणिनी आर्यिका ज्ञानमती जी एवं आर्यिका अभयमती जैसी आर्यिकाओं की जननी बनना है और फिर जननी बनने के पश्चात् गृहस्थ अवस्था की अपनी पुत्री आर्यिका ज्ञानमती से ही आर्यिका दीक्षा लेकर उन्हीं के संघ में रहना है। प्रस्तुत अभिनंदन ग्रंथ का भारतवर्षीय दि, जैन महासभा द्वारा प्रकाशन कराया गया है। अभिनंदन ग्रंथ के सम्पादकों में डॉ. पन्नालाल जी साहित्याचार्य, पं. कुन्जीलाल शास्त्री, डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल, 4. बाबूलाल जमादार, ब्र. सुमतिबेन जी शाह, ब्र. विद्युल्लता शाह, ब्र.कु. माधुरी शास्त्री एवं श्री अनुपम जैन के नाम दिये गये है। अभिनंदन ग्रंथ पाँच खंडों में विभक्त है। प्रथम खंड में शुभाशीर्वाद, शुभकामना, विनयांजलि, संस्मरण आदि