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358/ जैन समाज का वृहद् इतिहास
का अजबगढ भी सैंकड़ो वर्षों तक जैन साहित्य एवं संस्कृति का केन्द्र रहा। राजस्थान के विभिन्न नगरो में यहाँ से पर्याप्त संख्या में जैन धर्मावलम्बी जाते रहे । इसी ग्राम में सोमसागर के पास एक दीवाल पर जो लेख अंकित है उसमें तालाब में मछली मारने का निषेध किया गया है।
. अलवर के समान भरतपुर, करौली, धौलपुर के प्रदेश भी किसी न किसी रूप में जैन संस्कृति के केन्द्र रहे हैं। इनमें कामॉ, कुम्हेर, बयाना एवं तिजारा में जैन साहित्य का निर्माण एवं लेखन होता रहा। कॉमा नगर के शास्त्र भंडार में 14 वीं शाताब्दि तक की पाण्डुलिपियाँ संग्रहित हैं । बयाना का जैन मंदिर 10 वीं शताब्दि में निर्मित हुआ माना जाता है । इसी तरह कुम्हेर एवं तिजारा के मंदिर हैं जिनमें 16 वीं एवं 17 वी शताब्दि में कितने ही ग्रंथों की प्रतिलिपियाँ हुई थी।
अलवर का भूभाग पहिले जयपुर का ही एक भाग था । यह जिला मत्स्य प्रदेश में गिना जाता है लेकिन जब से राजस्थान प्रदेश बना है इन छोटे-छोटे प्रदेशों का नाम ही विस्मृत होता जा रहा है। अलवर जिले में जैन समाज की जनसंख्या निम्न प्रकार थी
वर्ष 1951
वर्ष 1961
वर्ष 1981
9320
5608
10321
अलवर जिले की तिजारा एवं लछमनगढ तहसील को छोड़कर शेष तहसीलों में जैन समाज की सघन बस्ती नहीं है। जिले की प्रमुख जैन जातियों में अग्रवाल, खण्डेलवाल, पल्लीवाल, सैलवाल एवं जैसवाल के नाम उल्लेखनीय है । पल्लीवाल, सैलवाल एवं जैसवाल जातियों की जनसंख्या में कमी के कारण तीनों जातियों में परम्परा में विवाह संबंध होना प्रारंभ हो गया है । इसके अतिरिक्त पल्लीवाल, दिगम्बर जैन एवं श्वेताम्बर जैनों में भी परस्पर विवाह संबंध होते हैं । दि. जैन पल्लीवालों के एक दो घरों में खण्डेलवाल जाति से भी वैवाहिक संबंध हुये हैं। अलवर में खण्डेलवालों के 60 घर, अग्रवाल जैनों के 350 घर, पल्लीवाल, जैसवाल एवं सैलवालों के 300 घर हैं । यहाँ 11 दिगम्बर जैन मंदिर हैं । ओसवालों के 2 मंदिर हैं । यहाँ महावीर जयन्ती का उत्सव अग्रवाल, खण्डेलवाल, पल्लीवाल समाज बारी बारी से मनाते हैं । अलवर में आठ मंदिर.दो चैत्यालय एवं एक नशियाँ है, जिनमें एक दि. जैन खण्डेलवाल मंदिर हलवाई पाड़ा, दि. जैन अग्रवाल पंचायती मंदिर, बलजी राठोड़ की गली, श्री चन्द्रप्रभु दि. जैन पंचायती मंदिर पल्लीवाल है।
1- राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत - पृ.स.57 2- वही पृ.सं.255 3. विस्तृत विवरण के लिये .....