Book Title: Jain Samaj ka Bruhad Itihas
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 688
________________ यशस्वी समाजसेवी/673 जयपर नगर का बिलाला परिवार जयपुर जैन समाज में बिलाला परिवार का विशिष्ट स्थान है। नगर के त्रिपोलिया बाजार में जाने पर बड़ी चौपड़ के पास बिलालों के चार प्रतिष्ठान देखे जा सकते हैं । बिलालों की धार्मिक निष्ठा,सामाजिक योगदान एवं पूरे परिवार में भावात्मक एकता अनुकरणीय है । इस परिवार का अपना इतिहास है जिसके अनुसार विक्रम संवत् 1890 में सांभर नगर से सर्वप्रथम समरूलाल जी जयपुर में आये और हनुमान जी के रास्ते में रहने लगे तथा पुरोहित जी के कटले की एक दुकान में किराणे का व्यवसाय प्रारंभ किया। उनके दो पुत्र नाथूलाल जी एवं उदयलाल जी हुये तथा दोनों भाइयों ने अपनी व्यापारिक दक्षता के आधार पर अपने पिता की आर्थिक स्थिति को ठीक किया। नाथूलाल जी दो पुत्र मोहरी लाल जी एवं मगनीराम जी एवं एक पुत्री तथा उदयलाल जी एक पुत्र हाथीराम जी से अलंकृत हुये । थोड़े ही समय पश्चात् मालीलाल जी एवं उदयलाल जी का देहान्त हो गया।नाथूलाल जी की पत्नी का स्वर्गवास होने पर उन्होंने दूसरा विवाह कर लिया जिससे एक और पुत्र के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। संवत् 1993 में आपका पी स्वर्गवास हो गया। श्री म्होरीलाल जी के यद्यपि पांच पुत्र एवं चार पुत्रियाँ हुई लेकिन दो पुत्र एवं एक पुत्री तो बाल्यावस्था में चल बसी शेष' बचे कपूरचंद जी गोपीचंद जी एवं छुटनलाल जी । श्री कपूरचंद जी भी पांच पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बने लेकिन चार पुत्रों का बाल्यावस्था में ही स्वर्गवास होने के कारण एक पुत्र एवं एक पुत्री बची । आपने प्रथम पत्नी के स्वर्गवास होने पर दूसरा विवाह किया लेकिन उससे कोई संतान नहीं हुई। श्री कपूरचंद जी के एकमात्र पुत्र श्री फूलचंद जी हुये जिनके पुत्र नरेन्द्रकुमार एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। श्री म्होरीलाल जी के पुत्र गोपीचंद जी समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं सेवा भावी हैं तथा धार्मिक संस्कारों से संपन्न है। आपके दो विवाह हुये पहली पत्नी से दो पुत्र एवं एक पुत्री हुई लेकिन एक पुत्र एवं एक पुत्री का असमय में ही वियोग हो गया । एक मात्र अशोक कुमार व्यवसायरत हैं तथा तीन पुत्र एवं एक पुत्री से सुशोभित हैं। दूसरी पत्नी से पांच पुत्र सुरेन्द्रकुमार, पदमकुमार,नरेन्द्र कुमार,विनोद कुमार एवं देवेन्द्र कुमार एवं दो पुत्रियाँ हुई। सभी का विवाह हो चका है। वर्तमान में सरेन्द्रकमार दो पुत्र एवं एक पुत्री से.पदमकुमार जी दो पुत्रियों से विनोदकुमार जी एक पुत्र एवं एक पुत्री से एवं देवेन्द्रकुमार जो एक पुत्र से अलंकृत हैं। श्री गोपीचंद जी के छोटे भाई छुट्टनलाल जी थे । सामाजिक क्षेत्र में उनका विशेष नाम था । वे सात पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बने लेकिन 2 पुत्रों का बाल्यावस्था में निधन होने से वर्तमान में पांच पुत्र ताराचंद जी,प्रेमचंद जी, राजकुमार जी,नवीन कुमार जी,सुधीरकुमार जी एवं दो पुत्रियों हैं । आप सबका विवाह हो चुका है तथा ताराचंद जी चार पुत्रों से, राजकुमार जी एक पुत्र एवं दो पुत्रियों से,नवीन कुमार जी दो पुत्रों से तथा सुधीरकुमार जी एक पुत्री से सुशोभित हैं । श्री छुहनलाल जी का 15 फरवरी सन् 1988 को स्वर्गवास हो चुका है। श्री उदयलाल जी के पुत्र हाथीराम जी ने तीन विवाह किये । तीसरी पत्नी से एक पुत्र एवं दो पुत्रियाँ हुई। पुत्र का बाल्यावस्था में ही वियोग होने से छुट्टनलाल जी के पुत्र प्रेमचंद जी को गोद लिया । हाथीराम जी का भी सन् 1985 में स्वर्गवास हो चुका है। श्री छुट्टनलाल जी के पौत्र एवं प्रेमचंद जी चार पुत्रों में अनिल कुमार, सुनील कुमार,राजोन कुमार का विवाह हो चुका है । अनिल कुमार के एक पुत्र एवं एक पुत्री एवं सुनील कुमार एक पुत्री से सुशोभित है।

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