________________
राजस्थान प्रदेश का जैन समाज 1357
जो आज भी जैन मंदिर के नाम से जानी जाती है वहाँ एक छतरी की दीवार पर शातिनाथ स्वामी की मूर्ति लगी
टोडारायसिंह में जैन समाज के 130 परिवार हैं जिनमें 65 परिवार खंडेलवाल समाज के व65 अग्रवाल जैन समाज के परिवार हैं। 7 घर श्वेताम्बर समाज के भी हैं इनका एक मंदिर भी है। पूरे समाज में धर्म के मामले में मतैक्य है तथा वात्सल्य भाव है । दिगम्बर समाज की यहाँ 3 बड़ी धर्मशालायें हैं जिनमें साधु संघ के ठहरने की पूरी व्यवस्था है । सभी की देवशास्त्र गुरु के प्रति पूरी भक्ति है इसी तरह यहां कितने ही आचार्य संघों के एवं कितनी ही आर्यिका संघ के चातुर्मास हो चुके हैं। यहां के समाज में से 2 मुनिराज, एक आर्थिक एवं : शुल्लक हुये हैं । पहिले यहां श्रावक व्रत पालने वाले 20-21 महानुभाव थे लेकिन वर्तमान में 10 व्रती हैं।
खण्डेलवाल समाज के बाकलीवाल (16) पाटनी (11) छाबडा (४) सोनी (5) गोधा (1) चांदवाड (1) अजमेरा (8) कटारिया (3) कासलीवाल (10) साह (1) वैद(3) इस प्रकार कुल 65 परिवार हैं । तहसील में 23 गाँवों में जैन परिवार रहते हैं जिनकी संख्या 78 है तथा 14 गाँवों में मंदिर हैं।
मालपुरा नगर में खण्डेला से आने वाला सरावगी समाज चित्तौड़ से यहाँ आकर बस गया था । कासलीवाल गोत्रीय सरावगी परिवार राजस्थान के दूसरे प्रदेशों में यहाँ से ही आगे गये हुये हैं।
इस प्रकार पूरा दौंक जिला दिगम्बर जैन समाज का गढ़ है जहां के अधिकांश गाँवों में जैन परिवार मिल जाते हैं। सरावगी समाज में, एवं अग्रवाल जैन समाज में इसी प्रदेश में सामूहिक विवाहों का आयोजन प्रारंभ हो चुका हैं। पूरा क्षेत्र साधुओं की भक्ति में रुचि रखता है इसलिये निवाई, मालपुरा , टौंक, डिग्गी, पचेवर आदि में साधुओं के संघों का विहार हुआ करता है । पुरातत्व की दृष्टि से मालपुरा टोडारायसिंह का क्षेत्र महत्वपूर्ण है। मत्स्य प्रदेश:. मत्स्य प्रदेश में अलवर, भरतपुर, धौलपुर एवं करौली की प्राचीन रियासतें गिनी जाती है। तहसील कोटपूतली में स्थित जोधपुरा, भरतपुर जिले में स्थित नोह तथा अलवर जिले के समीप स्थित बैराठ अब तक की पुरातत्वीय खोज के आधार पर माष्ठ इतिहास कालीन तथा ईसा के 900 वर्ष से 500 वर्ष तक के नगर सिद्ध होते हैं। अलवर प्रदेश में राजौरगढ़, भावगढ,प्राचीन कस्बे हैं जहाँ कभी जैन धर्म का व्यापक प्रभाव रहा था । राजौरगढ़ आठवी शताब्दि में श्रीसम्पत्र नगर था। चारों ओर ऊंचे पर्वतों से घिरा हुआ यह नगर कभी जैन संस्कृति का प्रधान केन्द्र रहा था। यहां आज भी 15 फीट ऊंची दिगम्बर प्रतिमा है जिसे वहां तो नोगजा कहते हैं।
राजोरगढ़ के विक्रम संवत् 1798 के एक अन्य लेख के अनुसार प्रसिद्ध शिल्पकार सर्वदेव द्वारा शांतिनाथ के मंदिर का निर्माण हुआ था। सर्वदेव ने इस मंदिर का निर्माण पुलीन्द राजा के आग्रह से किया था इसमें राजा सावर का भी उल्लेख हैं इसमें सर्वदेव के पुत्र बदांग तथा गुरु आचार्य सूरसेन का भी नाम अंकित है । इसी प्रदेश