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502/ जैन समाज का वृहद् इतिहास
बिहार प्रदेश का जैन समाज
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बिहार प्रदेश को भगवान महावीर की जन्मस्थली, साधना भूमि एवं निर्वाण भूमि रहने का सौभाग्य प्राप्त है । बीस तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि सम्मेदाचल भगवान महावीर की निर्वाण भूमि पावा, अहिंसा और अनेकान्त की उद्घोषणा स्थली राजगृही की पहाड़ियां इसी प्रदेश में विद्यमान हैं जिनकी बन्दना के लिये सारा जैन समाज यहां आने में अपने को सौभाग्यशाली मानता है। यही नहीं भगवान पार्श्वनाथ ने अपने निर्वाण के पूर्व मथुरा से अहिच्छेत्र होते हुये सम्मेदशिखर के उत्तुंग शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया था तथा जो कालान्तर में उन्हीं के नाम पर पार्श्वनाथ हिल के नाम से इतिहास प्रसिद्ध हुआ। अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी एवं सम्राट चन्द्रगुप्त ने मिलकर सारे देश में भगवान महावीर के सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार किया था तथा लाखों व्यक्तियों को जैनधर्म में दीक्षित करके उनके जीवन को सफल बनाया था।
बिहार को अतीत एवं वर्तमान राजधानी पाटलीपुत्र ने कितने ही साम्राज्यों का उत्थान एवं पतन देखा होगा | भगवान महावीर एवं श्रमणों के विहार होते रहने के कारण बिहार नाम से प्रसिद्ध इस प्रदेश में जैनधर्म ने अपनी चरम सीमा देखी तो कभी अपने पतन की पराकाष्ठा भी देखी होगी। जन-जन के जीवन में व्याप्त जैनधर्म श्रीरे-धीरे अपने केन्द्र से हटकर आगे बढ़ने लगा और चिन, उत्तर एवं दक्षिण भारत तक पहुंच गया। बिहार में जैनधर्म का प्रभाव कम होने लगा और श्रावक जाति सराक जाति (माँझी) में परिणित होकर आदिवासी जाति के नाम से जाने जानी लगी । जैन सिद्धान्तों के प्रति आज भी उनकी वही श्रद्धा एवं भक्ति है जो किसी जैन धर्मानुयायी में होनी चाहिये ।
इस प्रकार बिहार में यद्यपि जैन धर्मानुयायियों की संख्या अत्यधिक क्षीण हो गई लेकिन इस प्रदेश का महत्व कभी कम नहीं हुआ। यहां तीर्थ यात्रियों के रूप में प्रतिवर्ष हजारों लाखों की संख्या में यात्रार्थ आना जाना होता रहा और एक कवि की “एक बार वन्दै जो कोई ताहि नरक पशु गति नहि होई" की पंक्ति ने तो सारे जैन समाज में यहां की भूमि के प्रति श्रद्धा जाग्रत कर दी ।
बिहार प्रदेश सिद्ध क्षेत्रों की भूमि है। यहां सम्मेदशिखर जी सिद्धक्षेत्र के अतिरिक्त श्री राजगिरि जी सिद्धक्षेत्र, श्री पावापुरी जी सिद्धक्षेत्र, श्री गुणावा जी सिद्धक्षेत्र, श्री मन्दारगिरि जो सिद्धक्षेत्र, श्री कमलदह जी सिद्धक्षेत्र श्री कुण्डलपुर जी सिद्धक्षेत्र, श्री चम्पापुर सिद्धक्षेत्र के नाम उल्लेखनीय हैं। ये सिद्धक्षेत्र जैन संस्कृति के जीते-जागते उदाहरण हैं । इन सिद्धक्षेत्रों की वंदना करने के लिये प्रतिवर्ष हजारों यात्रीगण देश के सुदूर प्रान्तों से आते रहते हैं । इन क्षेत्रों के कारण भी बिहार का नाम सर्वोपरि लिया जाता है।
बिहार देश का बहुत बड़ा प्रदेश है। जनसंख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश के पश्चात् इसी का नाम आता है । सन् 1981 की जनगणना में बिहार प्रदेश की जनसंख्या 6.999,14,734 थी उनमें जैनों की जनसंख्या 27613 मात्र थी अर्थात् 26000 में एक जैन था। तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि में जैन धर्म मानने वालों की इतनी नगण्य संख्या