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634/ जैन समाज का वृहद् इतिहास
महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत का जैन समाज जैन धर्म और सम्गज सारे देश में फैला हुआ है । जितना जैन समाज उत्तर भारत में है उससे कहीं अधिक दक्षिण भारत में है। लेकिन भाषा खानपान, रहन-सहन में भिन्नता होने के कारण दक्षिण भारत का जैन समाज उत्तर भारत से कट गया है और हमें उनके संबंध में वास्तविकता का पता नहीं लगता इसलिये दक्षिण भारत में जैन समाज का वास्तविक इतिहास वही लिख सकता है तो कनड़, तमिल, तेलगू भाषायें जानता हो तथा वहाँ के जन सामान्य से परिचित हो । प्रस्तुत इतिहास में हमने उन्हीं समाजों का परिचय दिया है जो उत्तर भारत से दक्षिण भारत में व्यापार व्यवसाय के लिये गयी हुयी हैं और वर्षों से वहीं रह रहे हैं। लेकिन वहाँ गये हुये जैन बन्धु दक्षिण भारत को जानने लगे हैं तथा दूसरी भाषा कनड़ वगैरह बोलने लग गये हैं । मैं सौभाग्य से 8 दिसम्बर, 1990 से 10 दिसम्बर तक आयोजित प्रथम राष्ट्रीय प्राकृत सम्मेलन में भाग लेने बंगलौर गया था और वहाँ से यदि। भारतले नसला , चार, पाडीले नगरों में पहुंच कर उत्तर भारत के निवासियों से वहां की सामाजिक स्थिति के बारे में जो जानकारी प्राप्त कर एकत्रित की गयी उसी को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है : बम्बई : -
बंगलौर जाने के पूर्व तीन चार दिन के लिये बम्बई रुके और हम समुद्र तट पर स्थित श्री त्रिलोकचन्द जी कोटा वालों के अतिथि निवास में ठहरे । बम्बई तो विशाल महानगरी है । देश में कलकत्ता के पश्चात् जनसंख्या, में बम्बई का ही नम्बर है किन्तु व्यापार एवं सुन्दरता में बम्बई का प्रथम नम्बर है। नगर में जैन समाज कितनी संख्या में है इसके संबंध में अधिकृत सूचना किसी के पास भी उपलब्ध नहीं है । बम्बई में सबसे अधिक ओसवाल समाज है जिसमें स्थानकवासी, मूर्तिपूजक एवं तेरहपंथी शामिल है। दिगम्बर समाज भी संख्या में कम नहीं है लेकिन वह भी खण्डेलवाल, अग्रवाल, हूंबड, नरसिंहपुरा, नागदा, बोरीवली जैसी जातियों में बंटा हुआ है और एक जाति वाला दूसरी जाति की संख्या के बारे में बहुत कम जानता है । कानजी स्वामी के अनुयायियों के मंदिर बनने के पश्चात्, यह समस्या और भी जटिल हो गई है । वैसे बम्बई में दिगम्बर श्वेताम्बर समाज को मिलाकर जैनों की संख्या एक लाख से अधिक होनी चाहिये । बम्बई में अ.भा.दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी का कार्यालय है। दो धर्मशालायें हैं । अब तो बोरीवली में त्रिमूर्ति मंदिर दिगम्बर जैन समाज का सांस्कृतिक केन्द्र बन गया है । आचार्यों एवं मुनियों का संघ भी वहीं ठहरता है । बम्बई में भारतीय ज्ञानपीठ की ओर से एक बहुत बड़ी त्रि-दिवसीय उ हुई थी उस समय आचार्य विमल सागर जी महाराज का संघ भी वहीं रुका था। इस बार जब मैं वहाँ
ध्याय योगीन्द्र सागर जी महाराज के दर्शन किये थे । बम्बई में राजश्री पिक्चर्स के मालिक श्री ताराचन्द जो बडजात्या एवं उनका परिवार रहता है । बम्बई के प्रतिष्ठित समाज सेवियों में शीर्षस्थ नेता साह श्रेयान्स प्रसाद जी जैन भी बम्बई में रहते थे। उनके अतिरिक्त श्री प्रेमचन्द उत्तमचन्द जैन ठोले रहते हैं। श्री जैन दि. जैन महासभा महाराष्ट्र शाखा के अध्यक्ष थे । बहुत सामाजिक व्यक्ति तथा समाज सेवा में समर्पित रहते थे। जब दि. जैन सिद्ध क्षेत्र मांगीतुंगी मे महासभा का अधिवेशन हुआ तो उसके वे ही स्वागताध्यक्ष थे । बम्बई में ही श्री डी.एम. गंगवाल से मिलना हुआ । गंगवाल जी की साहित्य के प्रचार प्रसार में बहुत अभिरुचि है तथा आधी कीमत में पाठकों को किताबें उपलब्ध कराते रहते है । बम्बई के प्रमुख समाज सेवी ताराचन्द जी जैन, प्रकाशचन्द जी छाबड़ा से भी भेट हुई जो वहाँ के प्रतिष्ठित समाजसेवी हैं । वम्बई में दोशी परिवार प्रतिष्ठित परिवार है । सेठ लालचन्द जी